राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की एक शोध के अनुसार, भारत में 100 में लगभग 25 महिलाओं को डिलीवरी के दौरान गर्भाशय में रसौली (Fibroid) की समस्या होती है।
गर्भाशय में रसौली को गर्भाशय में गांठ, गर्भाशय में फाइब्रॉइड्स, बच्चेदानी में रसौली, बच्चेदानी में गांठ, बच्चेदानी में फाइब्रॉइड्स या यूटेराइन फाइब्रॉइड्स भी कहा जाता है। इसे मेडिकल भाषा में लियोमायोमा या मायोमा कहते हैं।
रसौली, गर्भाशय की मांसपेशियों में होने वाला एक ट्यूमर है जिसकी संख्या एक या अधिक हो सकती है। प्रकार के आधार पर इसका आकार निम्न हो सकता है:
- छोटे रसौली का आकार 1-5 सेंटीमीटर
- मध्यम रसौली का आकार 5-10 सेंटीमीटर
- बड़े रसौली का आकार 10 सेंटीमीटर या उससे बड़ा
जैसे-जैसे रसौली का आकार बढ़ता है, इसके लक्षणों गंभीर होते हैं। इन लक्षणों में पेट दर्द और पीरियड्स के दौरान असामान्य रक्स्राव शामिल हैं।
विशेषज्ञ का कहना है कि वजन अधिक होने (मोटापा) के कारण इसका खतरा बढ़ जाता है। जीवनशैली में पॉजिटिव बदलाव लाकर इससे बचा जा सकता है।
गर्भाशय में रसौली का उपचार कई तरह से किया जाता है जो आमतौर पर उसकी संख्या और आकार पर निर्भर करता है। इसके इलाज में जीवनशैली में बदलाव, दवाएं और सर्जरी शामिल हैं।
आइए इसके प्रकार, कारण, लक्षण और उपचार के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गर्भाशय में रसौली कितने प्रकार के होते हैं?
मुख्य रूप से इसके पांच प्रकार होते हैं।
- सबम्यूकोसल रसौली: ये गर्भाशय की लाइनिंग के नीचे मौजूद और गर्भाशय की तरफ फैले होते हैं। सबम्यूकोसल रसौली के कारण पीरियड्स के दौरान लंबे समय तक ब्लीडिंग होती है।
- इंट्राम्युरल रसौली: ये गर्भाशय की मांसपेशियों में मौजूद और गर्भाशय गुहा (uterine cavity) में या उसके बाहर की तरफ फैले होते हैं। इंट्राम्युरल रसौली के कारण पेल्विस, रीढ़ की हड्डी और मलाशय (Rectum) पर दबाव पड़ता है।
- सबसेरोसल रसौली: ये रसौली गर्भाशय के बाहर मांसपेशियों या गर्भाशय की दीवार में मौजूद होते हैं। इनके कारण पेल्विस में दर्द होता है और रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। साथ ही, पीरियड्स के दौरान अधिक ब्लीडिंग होती है।
- पेडन्युक्लेट रसौली: ये रसौली गर्भाशय की दीवार के बहार मौजूद होते हैं, लेकिन गर्भाशय से जुड़े होते हैं। पेडन्युक्लेट रसौली के कारण रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है जिससे पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है।
- सर्वाइकल रसौली: ये गर्भाशय के ऊपरी सतह में मौजूद होते हैं। सर्वाइकल रसौली से पीड़ित महिला को असामान्य पीरियड्स और अधिक ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है।
गर्भाशय में रसौली के क्या कारण हैं?
गर्भाशय में रसौली के सटीक कारणों की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसके संभावित कारणों में निम्न शामिल हैं:-
- आनुवंशिकी:- कई बार आनुवंशिकी के कारण गर्भाशय में रसौली हो जाता है। अगर आपके परिवार में पहले कोई इस समस्या से पीड़ित रहा है तो आपमें भी यह बीमारी होने की संभावना है।
- हार्मोन:- एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के कारण गर्भाशय में रसौली हो सकते हैं। रसौली इन दोनों हार्मोन को अवशोषित करते हैं जिससे इनका आकार बढ़ता है।
इन सबके अलावा, यह समस्या अन्य कारणों से भी हो सकती है जैसे कि गर्भनिरोधक दवाओं का सेवन, कर्म उम्र में पीरियड्स आना, शरीर में विटामिन डी की कमी, नॉन-वेज का अधिक सेवन, मोटापा और शराब, सिगरेट एवं दूसरी नशीली चीजों का सेवन आदि।
गर्भाशय में रसौली होने पर कौन से लक्षण दिखाई देते हैं?
गर्भाशय में रसौली के अनेको लक्षण होते हैं जिनकी मदद से इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि आप इस बीमारी से पीड़ित हैं। गर्भाशय में रसौली के लक्षण निम्न हैं:-
- एनीमिया होना
- थकावट होना
- पैरों में दर्द होना
- पेट में सूजन होना
- ब्लैडर पर दबाव होना
- योनि से ब्लीडिंग होना
- बार-बार पेशाब लगना
- कमजोरी महसूस होना
- कब्ज की शिकायत होना
- पीरियड्स के दौरान दर्द होना
- कभी-कभी चिड़चिड़ापन होना
- पेशाब करते समय रुकावट होना
- मल त्याग करते समय तेज दर्द होना
- यौन संबंध बनाते समय योनि में दर्द होना
- कभी-कभी पीरियड्स में खून के थक्के आना
- पेट के निचले हिस्से में दबाव और भारीपन होना
- पीरियड्स के दौरान या बीच में अधिक ब्लीडिंग होना
- मासिक धर्म चक्र का सामान्य से अधिक दिनों तक चलना
अगर आप ऊपर दिए गए लक्षणों को खुद में अनुभव करती हैं तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करें।
गर्भाशय में रसौली की जांच कैसे होती है?
गर्भाशय में रसौली की पुष्टि करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ कुछ महत्वपूर्ण जांच करने का सुझाव देते हैं जैसे कि:
- अल्ट्रासाउंड:- अल्ट्रासाउंड स्कैन की मदद से डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा और सबम्यूकोसल रसौली का पता लगाते हैं।
- एमआरआई:- गर्भाशय में रसौली के आकार और मात्रा का पता लगाने के लिए डॉक्टर एमआरआई का उपयोग करते हैं।
- हिस्टेरोस्कोपी:- इस जांच के दौरान हिस्टेरोस्कोप नामक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जिसके एक छोर पर कैमरा लगा होता है। आवश्यकता होने पर हिस्टेरोस्कोपी के बाद डॉक्टर बायोप्सी करने का सुझाव दे सकते हैं।
- लेप्रोस्कोपी:- इस प्रक्रिया के दौरान लेप्रोस्कोप नामक उपकरण का इस्तेमाल करके गर्भाशय के बाहर मौजूद रसौली की जांच की जाती है। जरूरत पड़ने पर इस प्रक्रिया के बाद बायोप्सी करना का सुझाव दिया जा सकता है।
इन सभी तकनीकों की मदद से गर्भाशय में रसौली की जांच की जाती है। उसके बाद, जांच के परिणामों के आधार पर इलाज के प्रकार का चयन करके इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
डॉक्टर से कब मिलें
अगर आप निम्न लक्षणों को अनुभव करती हैं तो जल्द से जल्द स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए:
- रसौली का तेजी से बढ़ना: यदि आपको रसौली का निदान किया गया है और वे तेजी से बढ़ रहे हैं तो स्ट्रीट रोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श करना चाहिए।
- मेनोपॉज़ के बाद रक्तस्राव: मेनोपॉज़ के बाद रक्तस्राव होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
- एनीमिया के लक्षण: मासिक धर्म में हेवी ब्लीडिंग के कारण थकान, कमजोरी या त्वचा का पीला पड़ना जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
- गर्भावस्था की जटिलताएँ: यदि आप गर्भवती हैं और रसौली हैं, तो वे कभी-कभी जटिलताओं का कारण बन सकते हैं। ऐसे में विशेषज्ञ से मिलना आवश्यक है।
गर्भाशय में रसौली का इलाज कैसे होता है?
इस बीमारी का इलाज कई तरह से किया जाता है जिसमें गर्भनिरोधक गोलियां, गोनेडोट्रोपीन रिलीजिंग हार्मोन एगोनिस्ट, लेवोनोर्जेस्ट्रल इंट्रायूटेरिन सिस्टम और सर्जरी शामिल हैं।
- गर्भनिरोधक गोलियां: ये ओवुलेशन साइकिल को नियंत्रित करती हैं जो गर्भाशय में रसौली को दूर करने में मदद करता हैं। कुछ मामलों में ये दवाएं बेअसर साबित हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर इलाज के दूसरे माध्यम का चुनाव करते हैं।
- गोनेडोट्रोपीन रिलीजिंग हार्मोन: यह एगोनिस्ट सेक्स हार्मोन को प्रभावित करता है। इलाज की इस प्रक्रिया से छोटे रसौली को ठीक किया जा सकता है। रसौली का आकार बड़ा होने पर सर्जरी की आवश्यकता होती है।
- लेवोनोर्जेस्ट्रल इंट्रायूटेरिन सिस्टम: एक प्रकार का उपचार है जो लेवोनोर्जेस्ट्रल का निर्माण करता है जो एक प्रकार का प्रोजेस्टेरोन है। इससे गर्भाशय में हो रहे बदलाव को रोकने में मदद मिलती है, लेकिन इसके ढेरों संभावित साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
जब इन सबसे कोई फायदा नहीं होता है तो डॉक्टर, सर्जरी से इस बीमारी का इलाज करते हैं। गर्भाशय में रसौली की सर्जरी को कई तरह से करते हैं जिसमें हिस्टरेक्टोमी, मायोमेक्टोमी और एंडोमेट्रियल एब्लेशन शामिल हैं।
गर्भाशय में रसौली होने पर आपका खान-पान कैसा होना चाहिए?
गर्भाशय में रसौली होने पर आमतौर स्त्री रोग विशेषज्ञ निम्न चीजों को अपने खान-पान में शामिल करने का सुझाव देते हैं:
- फाइबर से भरपूर चीजें जैसे कि ब्रोकोली का सेवन
- हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे कि गाजर, पालक और शकरकंद आदि का सेवन
- सिट्रस फ्रूट्स जैसे कि संतरा और निम्बू आदि को अपनी डाइट में शामिल करना
- फ्राइब्रॉइड्स सप्लीमेंट्स जैसे कि विटेक्स, फिश ऑयल और बी-कॉम्प्लेक्स आदि का सेवन
- मछली के तेल को डाइट में शामिल करना
- अलसी के बीज और साबुत अनाज आदि का सेवन करना
गर्भाशय में रसौली होने पर किन चीजों से परहेज करें?
जहाँ एक तरफ डॉक्टर कुछ चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने का सुझाव देते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ चीजों से परहेज करने का भी सुझाव देते हैं जैसे कि:
- अधिक फैट और प्रोसेस्ड मीट आदि से परहेज
- अधिक फैट वाले डेयरी उत्पादों को ना कहें
- अत्यधिक नमकीन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें
इन सबके अलावा, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट से भरपूर पदार्थ जैसे कि सफ़ेद चावल, सफेद ब्रेड, पास्ता, केक और कुकीज आदि से परहेज करना चाहिए। साथ ही, कैफीन का अत्याधिक सेवन से लिवर पर तनाव पड़ता है जिससे हार्मोन में असंतुलन होता है। इसलिए अधिक चाय या कॉफी के सेवन से बचने का सुझाव दिया जाता है।
गर्भाशय में रसौली के कारण कौन सी समस्याएं होती हैं?
अगर समय पर इस बीमारी का उचित इलाज नहीं किया गया तो कई तरह की समस्याओं का खतरा होता है जैसे कि:
- निःसंतानता
- एमेनोरिया
- पेट में सूजन
- पीरियड्स में अधिक रक्तस्राव
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