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Birla Fertility & IVF
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टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है और इसकी प्रक्रिया क्या है?

  • Published on February 03, 2024
टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है और इसकी प्रक्रिया क्या है?

टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है?

आईवीएफ की मदद से होने वाले बच्चों को ही टेस्ट-ट्यूब बेबी कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें, तो इसमें गर्भधारण की प्रक्रिया गर्भ से बाहर पूरी होती है। इस वैज्ञानिक तरीके में मानव भ्रूण को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) की मदद से प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है। फिर इसे मां के गर्भ में रखा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत एक पेट्री डिश में शुक्राणु और एग को निषेचित किया जाता है।

टेस्ट ट्यूब बेबी का जरूरत कब होती है?

जब कोई दंपत्ति नियमित संभोग के बावजूद गर्भ धारण नहीं कर पाते हैं, तब टेस्ट ट्यूब बेबी की जरूरत पड़ सकती है। इन वजहों से टेस्ट ट्यूब बेबी की जरूरत हो सकती है:

  • जब ओव्यूलेशन नहीं हो पाता है
  • जब एग में कोई समस्या हो
  • जब एक या दोनों फैलोपियन ट्यूब में खराब हो
  • जब महिला को गंभीर एंडोमेट्रियोसिस हो
  • जब पुरुष साथी के पास गर्भधारण कराने के लिए पर्याप्त स्पर्म नहीं हो
  • जब दंपत्ति में से कोई एक यौन रूप से अक्षम हो
  • जब अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान नहीं हो पाता है

टेस्ट-ट्यूब बेबी की प्रक्रिया

  • हार्मोन थेरेपी और एग प्रोडक्शन: टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में पहला कदम महिला के शरीर के अंदर अंडे बनाने की प्रक्रिया को तेज करना है। ऐसा करने के लिए मुख्य रूप से गोनाडोट्रोपिन और जीएनआरएचए हार्मोन का इस्तेमाल किया जाता है। महिला को ये इंजेक्टेबल हार्मोन अनुमापित खुराक में दिए जाते हैं, जिससे उसके अंडाशय में पहले से मौजूद फॉलिकल्स विकसित और परिपक्व होते हैं। अंडे की परिपक्वता के आखिरी चरण को पूरा करने के लिए एचसीजी इंजेक्शन दिया जाता है। एचसीजी इंजेक्शन देने के 36 घंटे बाद एग रिट्रीव किए जाते है।
  • एग रिट्रीवल: हार्मोन थेरेपी के बाद, अगला कदम एक छोटी प्रक्रिया जरिए अंडाशय से एग एकत्र करना है। किसी भी असुविधा को कम करने के लिए, यह प्रक्रिया सामान्य अनेस्थेसिया के तहत की जाती है। इसके बाद अंडाशय का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। अंडों को रिट्रीव करने के लिए एक सुई अंडाशय में ले जाई जाती है। डॉक्टर सुई को फॉलिकल में डालते हैं। फॉलिकल में एक अंडा होता है। सुई और दूसरे उपकरणों की मदद से एग रिट्रीव किया जाता है। यह प्रक्रिया दूसरे फॉलिकल में भी दोहराई जाती है। इसके बाद सुई की मदद से एग टेस्ट ट्यूब में चला जाता है। अंडों की पहचान करने के लिए तरल पदार्थ को माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है। इसे बाद में इनक्यूबेटर में एक विशेष मीडिया में पेट्री डिश में रखा जाता है।
  • स्पर्म कलेक्शन: जिस दिन एग रिट्रीव किए जाते हैं, पुरुष को भी स्पर्म का नया सैंपल जमा करना होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि टेस्ट-ट्यूब बेबी के अगले और सबसे जरूरी चरण में स्पर्म और एग दोनों का कलेक्शन करना होता है।
  • पेट्री डिश: एकत्र किए गए स्पर्म और एग को पेट्री डिश में मिलाना टेस्ट ट्यूब बेबी की पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम है। स्पर्म और अंडे को एक साथ मिलाने के बाद पेट्री डिश को इनक्यूबेटर में स्टोर किया जाता है। अगले दिन डॉक्टर निषेचन का पता लगाने के लिए मिश्रण की जांच करते हैं और भ्रूण के विकास पर भी नज़र रखते हैं। इससे यह पक्का करने में मदद मिलती है कि भ्रूण अच्छी तरह बढ़ रहा है और गर्भाशय में रखने के लिए तैयार है।
  • गर्भाशय में रखना: तैयार भ्रूण को गर्भाशय में रखने से टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। एक से तीन तक अलग-अलग भ्रूणों को महिला के गर्भाशय में रखने करने के लिए बहुत अच्छे कैथेटर का इस्तेमाल किया जाता है। गर्भावस्था को आगे बढ़ाने के लिए भ्रूण रखने के बाद हार्मोनल सपोर्ट दिया जाता है।

खून की जांच

भ्रूण को सफलतापूर्वक रखने के 14 दिनों के बाद रक्त बीटा एचसीजी लेवल की जांच की जाती है। इससे यह पता चलता है कि संबंधित महिला गर्भवती हैं या नहीं।

ऐसे कई कारण हैं जो टेस्ट ट्यूब बेबी की सफलता को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • महिला की उम्र: अगर महिला की उम्र 30-35 साल से कम है, तो सफलता की दर बढ़ जाती है।
  • भ्रूण की गुणवत्ता: आनुवंशिक और क्रोमोसोम संबंधी समस्याओं वाले भ्रूण कमजोर होते हैं और इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
  • अंडाशय की प्रतिक्रिया: अगर अंडाशय दवाएं देने के बाद भी प्रतिक्रिया नहीं करते हैं और एक या इससे ज्यादा अंडे नहीं बना पाते हैं।
  • भ्रूण को गर्भ में रखना: भ्रूण को गर्भ में रखने से जुड़ी समस्याओं के कारण कुछ मामलो में उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाती है। यह तब हो सकता है जब भ्रूण स्वाभाविक रूप से बढ़ना बंद कर देता है।

बरती जाने वाली सावधानियां

टेस्ट ट्यूब बेबी की सफलता के लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी है। जैसे:

  • स्वस्थ खान-पान
  • संतुलित आहार
  • धूम्रपान और शराब छोड़ना
  • नियमित व्यायाम और योग
  • मानसिक रूप से तैयार होना
  • भावनात्मक रूप से तैयार होना

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

  • टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है?

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से गर्भ धारण करके पैदा होने वाले बच्चों को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है। टेस्ट ट्यूब बेबी का कोई अलग अर्थ नहीं है। यह आईवीएफ के जरिए पैदा हुए बच्चे के बारे में बताने वाला एक आम शब्द है।

  • टेस्ट ट्यूब बेबी की जरूरत कब होती है?

जब कोई महिला दो साल तक नियमित और असुरक्षित सेक्स संबंध बनाने के बाद भी गर्भवती नहीं होती है, तो इसका मतलब है कि दोनों साथियों के रीप्रोडक्टिव तंत्र में कोई मसला है। इसके बाद टेस्ट ट्यूबी बेबी की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत हो सकती है।

  • टेस्ट ट्यूब बेबी में सफलता की दर कितनी है?

दुनिया भर में, युवा महिलाओं में औसत सफलता दर लगभग 40% है। 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में सफलता दर की संभावना भी बढ़ जाती है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सहायक प्रजनन तकनीक की सफलता दर आमतौर पर प्रति भ्रूण स्थानांतरण के आधार पर मापी जाती है।

Written by:
Dr. Madhulika Singh

Dr. Madhulika Singh

Consultant
Dr. Madhulika Singh, with more than 10 years of experience, is an IVF specialist. She is well-versed in Assisted Reproductive Technology (ART) techniques, ensuring the safety and success rate of treatments.Along with this, she is an expert in managing high-risk cases.
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