सर्वाइकल कैंसर: लक्षण, कारण, प्रकार, स्क्रीनिंग और रोकथाम

Dr. Prachi Benara
Dr. Prachi Benara

MBBS (Gold Medalist), MS (OBG), DNB (OBG) PG Diploma in Reproductive and Sexual health

16+ Years of experience
सर्वाइकल कैंसर: लक्षण, कारण, प्रकार, स्क्रीनिंग और रोकथाम

सर्वाइकल कैंसर महिलाओं को प्रभावित करने वाले सबसे आम कैंसरों में से एक है। हालांकि, यह सबसे ज़्यादा ठीक होने वाले कैंसरों में भी शामिल है। स्क्रीनिंग के ज़रिए सर्वाइकल कैंसर का समय रहते पता करके, ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के लिए वैक्सीन लेकर और लाइफ़स्टाइल में किए गए बदलाव की मदद से इस बीमारी के जोखिम को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। हालांकि, रोक-थाम के कई विकल्पों के बावजूद बड़ी तादाद में दुनिया भर की महिलाएं इससे हर साल पीड़ित होती हैं। इसलिए, इस बीमारी से निपटने के लिए जागरूकता और ज़रूरी जानकारी बेहद अहम हो जाती है। इस लेख में हम सर्वाइकल कैंसर के लक्षण से लेकर इसकी स्क्रीनिंग, रोकथाम और उपचार तक सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

सर्वाइकल कैंसर क्या है?

सर्वाइकल कैंसर तब होता है जब सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा में असामान्य कोशिकाएं बेकाबू होकर बढ़ने लगती हैं। सर्विक्स असल में यूटरस (बच्चादानी) का निचला संकरा हिस्सा है जो यूटरस को योनि को जोड़ता है। सर्वाइकल कैंसर की मुख्य वजह एचपीवी के हाई-रिस्क स्ट्रेन से लंबे समय तक होने वाला संक्रमण होती है। ज़्यादातर मामलों में, शरीर की इम्यूनिटी सिस्टम इस वायरस को ख़त्म कर देती है। हालांकि, कुछ महिलाओं में यह वायरस लंबे समय तक बना रहता है। यह वायरस सर्वाइकल की कोशिकाओं को असामान्य रूप से बदलने लगता है और यही आगे चलकर सर्वाइकल कैंसर का रूप ले लेता है।

सर्वाइकल कैंसर पर ध्यान क्यों देना ज़रूरी है?

दुनिया भर के आंकड़ों को देखें, तो सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में पाया जाने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है। इस कैंसर के हर साल 6 लाख से भी ज़्यादा मामले रिपोर्ट किए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में दुनिया भर में 6 लाख 60 हज़ार सर्वाइकल कैंसर के मामले दर्ज हुए और इसी साल 3 लाख 50 हज़ार महिलाओं को इस बीमारी की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी। जिन देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं या स्क्रीनिंग की व्यवस्था सीमित है, वहां इस कैंसर का पता अमूमन ऐडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद चल पाता है और बड़ी संख्या में होने वाली मौत की यही सबसे बड़ी वजह है। इसके उलट, जिन देशों में वैक्सीन और स्क्रीनिंग की व्यवस्था सही है, वहां इसके मामलों और मौतों की संख्या में काफ़ी कमी देखी गई है।

सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए कारगर तरीक़े मौजूद हैं, जिनमें एचपीवी के लिए टीकाकरण (वैक्सीनेशन) के अलावा स्क्रीनिंग और बाक़ी उपाय शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य 2030 तक व्यापक टीकाकरण और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों के ज़रिए सर्वाइकल कैंसर पर क़ाबू पाना है।

शरीर में सर्विक्स की भूमिका

सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा का रिप्रोडक्शन (प्रजनन) सिस्टम में अहम भूमिका है, जो स्पर्म, पीरियड के दौरान ख़ून और डिलीवरी के समय शिशु के लिए रास्ते का काम करती है। शरीर में अपनी जगह और बनावट की वजह से सर्विक्स को इन्फ़ेक्शन का काफ़ी ख़तरा रहता है और इसी वजह से ह्यूमन पेपिलोमावायरस से इसके संक्रमित होने की आशंका बनी रहती है। सर्विक्स में होने वाले कैंसर की यह सबसे बड़ी वजह है।

हालांकि, एचपीवी के ज़्यादातर इन्फ़ेक्शन अपने-आप ठीक हो जाते हैं, लेकिन अगर इन्फ़ेक्शन लगातार बना रहता है, तो यह सर्विक्स की कोशिकाओं में कैंसर पैदा करना शुरू कर देता है। अगर सही समय पर इलाज न किया जाए, तो कैंसर ऐडवांस स्टेज में पहुंच जाता है।

सर्वाइकल कैंसर के लक्षण

शुरुआती स्टेज में कई बार सर्वाइकल कैंसर के स्पष्ट लक्षणों का पता नहीं चलता। हालांकि, जैसे-जैसे यह बढ़ता है, वैसे-वैसे अलग-अलग तरह के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इन लक्षणों को सही समय पर पहचानकर मेडिकल सलाह लेने से कारगर उपचार की संभावना बढ़ जाती है। तो आइए सर्वाइकल कैंसर के लक्षणों को समझते हैं:

सर्वाइकल कैंसर के आम लक्षण

  1. असामान्य ब्लीडिंग
    •   पीरियड साइकल के बीच में ब्लीडिंग
    •   पीरियड लंबे समय तक चलना
    •   मेनोपॉज़ के बाद ब्लीडिंग
    •   संभोग के बाद ब्लीडिंग
  1. योनि से दुर्गंध भरा डिसचार्ज

सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं को योनि से असामान्य डिसचार्ज देखने को मिल सकता है। यह समान्य से ज़्यादा मात्रा में होता है और इससे दुर्गंध आती है।

  1. पेल्विस में दर्द

पेल्विस हिस्से में लंबे समय तक दर्द या संभोग के दौरान होने वाला दर्द भी सर्वाइकल कैंसर के लक्षण हैं। ख़ासकर जब कैंसर अगले स्टेज में पहुंच जाए, तो ये दर्द साफ़ तौर पर महसूस होने लगते हैं।

  1. पेशाब और शौच में परेशानी

ऐडवांस स्टेज में पहुंचने के बाद, सर्वाइकल कैंसर आस-पास के अंगों में भी फैलने लगता है। जैसे, ब्लैडर या फिर रैक्टम। इस वजह से बार-बार पेशाब आना, पेशाब करने में परेशानी, पेशाब से ख़ून आना या फिर शौच में परेशानी जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

  1. थकान और वज़न गिरना

बिना किसी और वजह से वज़न में अचानक आई गिरावट और काफ़ी ज़्यादा थकान, सर्वाइकल कैंसर के ऐडवांस स्टेज के लक्षण हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारा शरीर इस बीमारी से लड़ने में ऊर्जा खपाता रहता है।

डॉक्टर से कब मिलें?

अगर आपने अपने शरीर में ऊपर बताए गए लक्षण महसूस किए हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कैंसर के मामले में देरी बरतना ख़तरे को बढ़ाना है। हालांकि, ऐसे लक्षण सर्वाइकल कैंसर के अलावा दूसरे मेडिकल कंडीशन से भी पैदा हो सकते हैं, लेकिन अगर समय रहते उपचार किया जाए, तो सही और क़ामयाब इलाज की गुंजाइश बढ़ जाती है।

सर्वाइकल कैंसर के कारण

सर्वाइकल कैंसर मुख्य रूप से एचपीवी वायरस के हाई-रिस्क वैरिएंट के इन्फ़ेक्शन से होता है। हालांकि, इस कैंसर को विकसित करने के पीछे कई दूसरे कारक भी ज़िम्मेदार होते हैं। इन कारणों को समझना इस बीमारी की रोकथाम और उपचार के लिए बेहद ज़रूरी है।

  1. एचपीवी इन्फ़ेक्शन

ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) असल में 100 से ज़्यादा वायरस का एक समूह है, जिसके कुछ स्ट्रेन सर्वाइकल कैंसर की वजह बनते हैं। एचपीवी आम तौर पर यौन संपर्क (सेक्शुअल कॉन्टैक्ट) के ज़रिए फैलता है। लिहाज़ा, यौन रूप से ज़्यादा ऐक्टिव महिलाओं के इस वायरस की चपेट में आने की आशंका ज़्यादा रहती है। सर्वाइकल कैंसर पैदा करने वाले एचपीवी के दो सबसे आम हाई-रिस्क स्ट्रेन, एचपीवी-16 और एचपीवी-18 हैं। दुनिया भर में सर्वाइकल कैंसर के जितने मामले देखे जाते हैं, उनमें से 76 फ़ीसदी के पीछे इन्हीं दो स्ट्रेन का हाथ होता है।

एचपीवी इन्फ़ेक्शन अमूमन अपने-आप ख़त्म हो जाता है, लेकिन कुछ मामलों में वायरस शरीर में घर बना लेता है और यह धीरे-धीरे सर्वाइकल कोशिकाओं को नुक़सान पहुंचाना शुरू कर देता हैं। यही आगे चलकर कैंसर का रूप ले लेता है।

  1. धूम्रपान

धूम्रपान का सीधा असर हमारे इम्यून सिस्टम के ऊपर पड़ता है और यह कमज़ोर पड़ जाता है। इस वजह से एचपीवी समेत बाक़ी इन्फ़ेक्शन से लड़ने की हमारे शरीर की क्षमता भी कमज़ोर हो जाती है। अध्ययन के मुताबिक़, सिगरेट नहीं पीने वाली महिलाओं की तुलना में सिगरेट पीने वाली महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर होने की आशंका दोगुनी होती है। इसके अलावा, धूम्रपान दूसरे कैंसर और सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों की भी वजह बन सकता है।

  1. कमज़ोर इम्यून सिस्टम

जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है, उनमें सर्वाइकल कैंसर विकसित होने की आशंका ज़्यादा होती है। मसलन, एचआईवी/एड्स से पीड़ित महिलाओं में यह कैंसर ज़्यादा फैल सकता है। वजह साफ़ है। कमज़ोर इम्यून सिस्टम एचपीवी इन्फ़ेक्शन और कैंसर पैदा करने वाले दूसरे एजेंट से लड़ने में कारगर साबित नहीं होता।

  1. कम उम्र में यौन संबंध और एक से ज़्यादा पार्टनर

कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक़ कम उम्र में यौन संबंध बनाने से भी एचपीवी संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, एक से ज़्यादा पार्टनर के साथ यौन संबंध बनाने से भी एचपीवी फैलने का ख़तरा होता है। सेक्स के दौरान कंडोम इस्तेमाल करने से एचपीवी और दूसरे सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फ़ेक्शन (एसटीआई) से बचने में मदद मिलती है।

  1. अन्य वजहें
    • गर्भनिरोधक गोलियां: लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल भी सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते मामलों के साथ संबंध पाया गया है।
    • परिवार में पिछला केस: जिन महिलाओं के परिवार में सर्वाइकल कैंसर के मामले पहले से मौजूद रहे हैं, उनमें यह बीमारी फैलने की आशंका ज़्यादा रहती है।
    • ख़राब खान-पान: ज़रूरी पौष्टिक तत्वों की कमी की वजह से इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ सकता है और इस तरह कैंसर का ख़तरा बढ़ सकता है। इसलिए, ज़रूरी है कि आहार में सभी ज़रूरी पौष्टिक तत्वों को शामिल किया जाए।

आइए ऊपर बताए गए कारणों को आसान तरीक़े से इस टेबल में समझें

वजह असर
एचपीवी इन्फ़ेक्शन 75% सर्वाइकल कैंसर की वजह
धूम्रपान सर्वाइकल कैंसर का दोगुना ख़तरा
कमज़ोर इम्यूनिटी एचपीवी इन्फ़ेक्शन से लड़ने में नाकामयाबी
कम उम्र में यौन संबंध एचपीवी इन्फ़ेक्शन की ज़्यादा आशंका

 

सर्वाइकल कैंसर के प्रकार

सर्वाइकल कैंसर को कैंसर से प्रभावित कोशिकाओं के आधार पर बांटा गया है। सर्वाइकल कैंसर के दो मुख्य प्रकार ये हैं:

स्क्वीमस सेल कार्सिनोमा

स्क्वीमस सेल कार्सिनोमा सर्वाइकल कैंसर का सबसे आम प्रकार है, जो तक़रीबन 70–80% मामलों में पाया जाता है। यह कैंसर सर्विक्स के बाहरी हिस्से में मौजूद पतली और चपटी स्क्वीमस सेल में विकसित होता है। अक्सर रूटीन पैप स्मीयर टेस्ट के ज़रिए शुरुआती स्टेज में ही इसका पता लगा लिया जाता है, जिससे इसका इलाज मुमकिन हो जाता है।

ऐडिनोकार्सिनोमा

ऐडिनोकार्सिनोमा सर्विक्स कैनाल की ग्लैंड्यूलर सेल में पनपता है। यह स्क्वीमस सेल कार्सिनोमा के मुक़ाबले कम संख्या में फैलता है, लेकिन यह उससे कहीं ज़्यादा घातक और आक्रामक होता है। पैप स्मीयर जैसी रूटीन स्क्रीनिंग के ज़रिए इसकी पहचान करना मुश्किल होता है। हालांकि, क़ामयाब इलाज के लिए इसका जल्दी पता लगाना बेहद ज़रूरी है।

दुर्लभ तरह के सर्वाइकल कैंसर

सर्वाइकल कैंसर के कई दुर्लभ प्रकार भी होते हैं। इनमें स्मॉल सेल कार्सिनोमा, क्लीयर सेल कार्सिनोमा, न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर वगैरह शामिल हैं। ये कैंसर ज़्यादा आक्रामक होते हैं और इनका इलाज बाक़ी की तुलना में ज़्यादा मुश्किल होता है।

सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग

सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग की मदद से शुरुआती स्टेज में इसका पता लगाना आसान हो जाता है और इस तरह उपचार के लिहाज़ से मरीज को राहत मिलती है। इस तरह की स्क्रीनिंग के लिए कई तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाता है:

  1.     पैप स्मीयर टेस्ट (पैपानिकोलाउ टेस्ट)

पैप स्मीयर टेस्ट सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग का सबसे आम तरीक़ा है। इस टेस्ट का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा किया जाता है। इसमें सर्विक्स की कोशिकाओं को निकाला जाता है और उसके बाद उनकी गतिविधियों की जांच की जाती है कि वह कितनी असामान्य हैं। इससे कैंसर और कैंसर से पहले के स्टेज का पता लग जाता है। इस टेस्ट के ज़रिए असामान्य कोशिकाओं को कैंसर में बदलने से पहले ही पहचान लिया जाता है, जिससे समय पर इलाज मुमकिन हो पाता है।

  1.     एचपीवी डीएनए टेस्ट

एचपीवी डीएनए टेस्ट में सर्विक्स की कोशिकाओं में हाई-रिस्क वाले एचपीवी स्ट्रेन की मौज़ूदगी का पता लगाया जाता है। अमूमन यह टेस्ट 30 साल से ज़्यादा उम्र की महिलाओं में पैप स्मीयर टेस्ट के साथ किया जाता है। इसमें सर्वाइकल कैंसर पनपने के जोखिम के बारे में अतिरिक्त जानकारी भी मिलती है।

  1.     ऐसिटिक ऐसिड के साथ विज़ुअल इंस्पेक्शन (वीआईए)

वीआईए कम संसाधन वाले इलाक़ों में पैप स्मीयर टेस्ट का एक किफ़ायती विकल्प है। इसमें सर्विक्स पर विनेगर की तरह दिखने वाले घोल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे असामान्य कोशिकाओं का रंग सफ़ेद दिखने लगता है। इस मेथड के ज़रिए पता लगाया जाता है कि मरीज में कैंसर का जोखिम है या नहीं। इस तरह, आगे की स्क्रीनिंग और उपचार में मदद मिलती है।

सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए गाइडलाइन

आयु वर्ग स्क्रीनिंग कब कराएं
21-29 हर तीन साल में एक बार पैप स्मीयर टेस्ट
30-65 हर पांच साल में पैप स्मीयर के साथ-साथ एचपीवी डीएनए टेस्ट
65 से ज़्यादा अगर पिछले टेस्ट नॉर्मल हैं, तो और टेस्ट की ज़रूरत नहीं

 

सर्वाइकल कैंसर की रोक-थाम के उपाय

सर्वाइकल कैंसर पर क़ाबू पाने का सबसे कारगर तरीक़ा है, इसे पनपने से पहले ही रोक देना। रोक-थाम के उपायों से आप सर्वाइकल कैंसर के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकती हैं। नीचे ऐसे तरीक़ों के बारे में जानकारी दी गई है:

  1.     एचपीवी वैक्सीन

एचपीवी वैक्सीन से एचपीवी की रोकथाम में मदद मिलती है, जो कैंसर का सबसे कॉमन स्ट्रेन है। आम तौर पर बचपन या फिर किशोरावस्था में यह वैक्सीन सबसे ज़्यादा कारगर है, क्योंकि माना जाता है कि यौन गतिविधि शुरू करने से पहले ही यह वैक्सीन लगा लेनी चाहिए। हालांकि, जिन महिलाओं ने यह वैक्सीन नहीं लगाई है, वह 45 साल की उम्र तक लगवा सकती हैं।

  1.     सुरक्षित यौन आचरण

यौन संबंध के दौरान कंडोम का इस्तेमाल, एचपीवी इन्फ़ेक्सन के ख़तरे को कम करने में मदद करता है। कम उम्र में और ज़्यादा पार्टनर के साथ यौन संबंध बनाने से परहेज करने से भी एचपीवी ट्रांसमिशन का जोखिम कम हो जाता है।

  1.     धूम्रपान से दूरी

धूम्रपान न करने से न सिर्फ़ सर्वाइकल कैंसर से बचने, बल्कि समूचे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। धूम्रपान करने वाली महिलाओं में एचपीवी इन्फ़ेक्शन और सर्वाइकल कैंसर का जोखिम ज़्यादा होता है।

  1.     स्वास्थ्य की नियमित जांच

स्त्री रोग विशेषज्ञ से नियमित रूप से मिलने और ज़रूरी जांच कराने से शुरुआती स्टेज में ही किसी भी तरह की गड़बड़ियों का पता लग जाता है। शुरुआती स्टेज में सर्वाइकल कैंसर आसानी से ठीक हो सकता है, इसलिए नियमित जांच बेहद ज़रूरी है।

सर्वाइकल कैंसर के इलाज के विकल्प

सर्वाइकल कैंसर का इलाज, इसके स्टेज, प्रकार और मरीज़ के स्वास्थ्य के ऊपर निर्भर करता है। इलाज की मुख्य विधियों के बारे में नीचे बताया गया है:

  1.     सर्जरी

सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती स्टेज में सर्जरी आमतौर पर सबसे कारगर इलाज होता है। इसकी सर्जरी कई तरह की होती है। मसलन:

  • कोनिज़ेशन: सर्विक्स के आगे के संकरे हिस्से को निकालना।
  • हिस्टेरेक्टॉमी: यूटरस (बच्चादानी) और सर्विक्स को हटाना।
  • पेल्विक लिंफ़ नोड डिसेक्शन: पेल्विक हिस्से से लिंफ़ नोड को हटाना।
  1.     रेडिएशन थेरेपी

रेडिएशन थेरेपी में हाई-एनर्जी वाली किरणों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कैंसर सेल को मारने का काम करती हैं। आम तौर पर इसका इस्तेमाल ऐडवांस स्टेज के सर्वाइकल कैंसर वाले रोगियों के ऊपर सर्जरी के साथ-साथ किया जाता है या फिर ऐसे रोगियों को यह थेरेपी दी जाती है, जो किसी मेडिकल वजहों से सर्जरी नहीं करा सकतीं।

  1.     कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में दवाओं के ज़रिए कैंसर सेल को मारने का काम किया जाता है। यह आम तौर पर ऐडवांस स्टेज वाले सर्वाइकल कैंसर की मरीज को दी जाती है या फिर कैंसर को शरीर के दूसरे भाग में फैलने से रोकने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

  1.     टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी

टारगेटेड थेरेपी में कैंसर पैदा करने वाले ख़ास मॉलीक्यूल पर ध्यान दिया जाता है, जबकि इम्यूनोथेरेपी में शरीर के इम्यून सिस्टम को कैंसर सेल से लड़ने के लिए मज़बूत बनाया जाता है।

सर्वाइकल कैंसर से जुड़े मिथ्स और फ़ैक्ट्स

मिथ्स फ़ैक्ट्स
मेनोपॉज़ के बाद पैप स्मीयर की ज़रूरत नहीं होती मेनोपॉज़ के बाद भी यह स्क्रीनिंग काफ़ी कारगर होती है
सिर्फ़ बड़ी उम्र की महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होता है सर्वाइकल कैंसर हर उम्र की महिलाओं को हो सकता है। हालांकि, उम्र के साथ जोखिम भी बढ़ता जाता है
एचपीवी वैक्सीन सिर्फ़ यौन रूप से सक्रिय महिलाओं को ही लगाना चाहिए वैक्सीन तब सबसे ज़्यादा कारगर होती है, जब इसे एचपीवी संक्रमण से पहले लगाई जाए
सर्वाइकल कैंसर हमेशा जानलेवा होती है समय रहते उपचार होने पर सर्वाइकल कैंसर पर क़ाबू पाया जा सकता है

 

निष्कर्ष

सर्वाइकल कैंसर एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, लेकिन यह सबसे ज़्यादा ठीक होने वाले कैंसरों में से एक है। नियमित जांच, एचपीवी वैक्सीन और सही लाइफ़स्टाइल अपनाने से सर्वाइकल कैंसर के जोखिम को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। इसके प्रति जागरूकता, शुरुआती स्टेज में ही पता लगाना और सही इलाज इससे लड़ने की कुंजी है।

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