टर्नर सिंड्रोम ऐसी स्थिति है जो क्रोमोजोम की संरचना प्रभावित होने पर दिखती है। क्रोमोजोम हमारे शरीर के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जिसमें जीन मौजूद होता है। क्रोमोजोम संरचना में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी हो तो इससे कई शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। किसी भी सामान्य मनुष्य के शरीर में कुल 23 ग्रुप के क्रोमोजोम होते हैं और 23वां क्रोमोजोम लिंग अथवा सेक्स के लिए उत्तरदायी होता है।
पुरुषों में XY और महिलाओं में XX क्रोमोजोम पाए जाते हैं। टर्नर सिंड्रोम की स्थिति में महिलाओं के X क्रोमोजोम में समस्या होती है। इसलिए यह बीमारी विशेष तौर पर महिलाओं में ही होती है। टर्नर सिंड्रोम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं जो क्लासिक टर्नर सिंड्रोम और मोजेक टर्नर सिंड्रोम कहलाते हैं।
क्लासिक टर्नर सिंड्रोम में दो X क्रोमोजोम में से एक अनुपस्थित होता है, वहीं मोजेक टर्नर सिंड्रोम में ज्यादातर कोशिकाओं में X क्रोमोजोम मौजूद रहता है, लेकिन कुछ में आंशिक रूप से अनुपस्थित या असामान्य रहता है।
महिलाओं में क्यों होती है टर्नर सिंड्रोम?
यह बीमारी खासतौर पर महिलाओं को होता है क्यूंकि उनमें XX क्रोमोजोम मौजूद रहता है। यही क्रोमोजोम लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। XX क्रोमोजोम जब असामान्य होता है या मौजूद नहीं होता है तो टर्नर सिंड्रोम की समस्या पैदा होती है।
इसे अनुवांशिक बीमारी भी माना जाता है जिसमें महिलाओं के भीतर X क्रोमोजोम या तो मौजूद नहीं होता है या फिर उनमें गड़बड़ी होती है। टर्नर सिंड्रोम से पीड़ित महिलाओं में दो सामान्य XX क्रोमोजोम की जगह केवल एक सामान्य X क्रोमोजोम होता है।
क्रोमोजोम का एक जोड़ा बच्चे के लिंग को निश्चित करता है। इसे सेक्स क्रोमोजोम भी कहते हैं। इसमें एक क्रोमोजोम माता और एक क्रोमोजोम पिता से मिलता है। माता की ओर से हमेशा X क्रोमोजोम मिलता है जबकि पिता की ओर से X या Y में से कोई एक मिलता है। सामान्य रूप से लड़कों में एक एक्स (X) और एक वाई (Y) क्रोमोजम अर्थात XY क्रोमोजोम होते हैं। जबकि लड़कियों में दो एक्स (XX) क्रोमोजोम मौजूद होते हैं।
टर्नर सिंड्रोम के लक्षण
टर्नर सिंड्रोम से पीड़ित लड़कियों का विकास धीरे-धीरे होता है और उनमें पाचन से जुड़ी दिक्कतें होती हैं। इसके अलावा, उनकी शारीरिक बनावट में भी समस्या होती है। ऐसी लड़कियों की गर्दन छोटी, सीना चौड़ा या फिर कान बड़े या छोटे हो सकते हैं। उनमें स्तन का विकास नहीं हो पाता है और कई बार गर्भधारण में समस्या भी होती है। इस सिंड्रोम की वजह से सोचने-समझने की क्षमता का विकास ठीक से नहीं हो पाता है। इनमें मानसिक रूप से कमजोर होने का खतरा होता है।
टर्नर सिंड्रोम के कारण दिल की बीमारी, किडनी की बीमारी, बाल झड़ने और सुनने की क्षमता कम होने जैसी दिक्कतें भी देखने को मिल सकती हैं। टर्नर सिंड्रोम का कोई विशेष इलाज मौजूद नहीं है इसलिए इसके कारण शरीर में दिखने वाले लक्षणों का उपचार किया जाता है।
टर्नर सिंड्रोम का उपचार
टर्नर सिंड्रोम से पीड़ित महिलाओं को स्वयं का ख्याल रखना पड़ता है। इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन लक्षणों को बेहतर करने के लिए डॉक्टर कुछ उपचार का सुझाव दे सकते हैं। इस विकार का पता जन्म से पहले या बचपन में लगाया जा सकता है।
टर्नर सिंड्रोम के मरीज को ग्रोथ हार्मोन थेरेपी, एस्ट्रोजेन थेरेपी आदि दी जाती है। इसके अलावा, प्रेगनेंसी तथा प्रजनन को लेकर भी उपचार किए जाते हैं। उचित देखरेख से एक्स क्रोमोजोम की अनुपस्थिति के बावजूद महिला सामान्य जीवन जी सकती है।
टर्नर सिंड्रोम से जूझ रही महिलाओं की ऊंचाई बढ़ाने के लिए ग्रोथ हार्मोन थेरेपी दिया जाता है। उपचार जल्द शुरू होने पर हड्डी का विकास ठीक से होता है। वहीं एस्ट्रोजेन हार्मोन स्तन विकास में मदद और गर्भाशय के आकार को ठीक करता है।
टर्नर सिंड्रोम से जूझने वाली ज्यादातर महिलाओं को गर्भवती होने के लिए उपचार की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में एक अच्छे डॉक्टर से परामर्श करने के साथ-साथ उपचार के दूसरे विकल्पों पर ध्यान देना होता है।