बच्चेदानी के कैंसर का कारण, लक्षण और इलाज

Author : Dr. Nidhi Gohil November 21 2024
Dr. Nidhi Gohil
Dr. Nidhi Gohil

MBBS, MS (Obstetrics & Gynaecology), Fellowship in IVF

5+Years of experience:
बच्चेदानी के कैंसर का कारण, लक्षण और इलाज

बच्चेदानी के कैंसर को गर्भाशय कैंसर या यूटेराइन कैंसर (Uterine Cancer) भी कहा जाता है, जो महिलाओं के प्रजनन अंग को प्रभावित करता है। बच्चेदानी वह स्थान है, जहां गर्भधारण के बाद बच्चे का विकास होता है। गर्भाशय कैंसर या बच्चेदानी का कैंसर महिलाओं में होने वाला कैंसर है, जो बच्चेदानी की परत में शुरू होता है और बाद में शरीर के दूसरे अंग में भी फैल सकता है। सामान्यतः यह समस्या 60 साल की महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, लेकिन वर्तमान में हर उम्र कि महिलाओं में बच्चेदानी में कैंसर के मामले देखे जा रहे हैं।

चलिए इस ब्लॉग से समझते हैं कि बच्चेदानी में कैंसर के कारण और लक्षण क्या है और समय रहते कैसे इस स्थिति का इलाज संभव है?

बच्चेदानी में कैंसर क्या है?

शरीर में जब कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती है, तो वह कैंसर का रूप ले लेती है। कैंसर जिस अंग को प्रभावित करता है, उसका नाम उसी अंग के आधार पर ही रखा जाता है। जब कैंसर की शुरुआत बच्चेदानी में होती है, तो इसे बच्चेदानी के कैंसर के नाम से जाना जाता है।

महिलाओं के बच्चेदानी को कई तरह के कैंसर प्रभावित करते हैं, जिसमें बच्चेदानी का कैंसर मुख्य प्रकार का कैंसर है। मेडिकल भाषा में इसे एंडोमेट्रियल कैंसर, बच्चेदानी का कैंसर या यूटेराइन कैंसर के नाम से भी जाना जाता है। बच्चेदानी में कैंसर भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

बच्चेदानी में कैंसर के प्रकार

मुख्य रूप से बच्चेदानी का कैंसर दो प्रकार के होते हैं, जिन्हें यूटराइन सार्कोमा और एंडोमेट्रियल कार्सिनोमा कहा जाता है। चलिए दोनों को एक-एक करके समझते हैं –

  • एंडोमेट्रियल कार्सिनोमा या एंडोमेट्रियल कैंसर (Endometrial Carcinoma): ज्यादातर महिलाओं को इस प्रकार का कैंसर सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। इसमें बच्चेदानी की परत या फिर एंडोमेट्रियम (endometrium) प्रभावित होती है।
  • यूटेराइन सार्कोमा या यूटेराइन कैंसर (Uterine Sarcoma): यूटराइन कैंसर महिलाओं के बच्चेदानी की दीवार को प्रभावित करने वाला कैंसर है। इस प्रकार का कैंसर बहुत कम महिलाओं को प्रभावित करता है।

बच्चेदानी में कैंसर कैसे होता है?

बढ़ती उम्र बच्चेदानी में कैंसर का एक मुख्य जोखिम कारक है। वह महिलाएं भी बच्चेदानी में कैंसर के खतरे के दायरे में होती हैं, जिन्होने बच्चेदानी को निकालने का ऑपरेशन नहीं कराया है। ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि वह महिलाएं इस रोग से पीड़ित होती हैं, जिनमें मेनोपॉज या फिर रजोनिवृत्ति (पीरियड्स बंद होना) का समय शुरू हो जाता है।

यहां आपको एक बात समझनी होगी कि बच्चेदानी में कैंसर के सटीक कारण अभी भी अज्ञात है। हमारे सहित सभी स्त्री रोग विशेषज्ञों की मानें तो बच्चेदानी की कोशिकाओं में बदलाव आने से बच्चेदानी में कैंसर की समस्या होती है। यह असामान्य कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती रहती है, जिसके बाद यह कोशिकाएं गांठ (ट्यूमर) का रूप ले लेती है।

हालांकि कुछ जोखिम कारक हैं, जो गर्भाशय कैंसर की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं। यदि आप इनमें से किसी भी श्रेणी में आते हैं, तो हम आपको सलाह देंगे कि आप अपने डॉक्टर से बात करें या फिर हमसे संपर्क करें।

बच्चेदानी में कैंसर के लक्षण

यहां आपको एक बात समझने की आवश्यकता है कि बच्चेदानी में कैंसर के लक्षण कई अन्य गंभीर समस्याओं के समान ही होते हैं। हालांकि कुछ लक्षण हैं, जो बच्चेदानी में कैंसर की तरफ इशारा करते हैं जैसे –

  • मेनोपॉज से पहले पीरियड्स के बीच में योनि से खून आना।
  • मेनोपॉज के बाद भी योनि से रक्त हानि या स्पॉटिंग होना।
  • पेट के निचले भाग में दर्द या पेल्विक (श्रोणि) क्षेत्र में ऐंठन होना।
  • मेनोपॉज के बाद योनि से तरल पदार्थ का निकलना।
  • 40 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में ज्यादा देर तक या बार-बार रक्त हानि होना।
  • यौन संबंध बनाते समय योनि में दर्द महसूस होना।

यह सारे लक्षण आपको भ्रमित कर सकते हैं, क्योंकि यह योनि के अन्य गंभीर रोगों की तरफ भी संकेत करते हैं। इसलिए लक्षणों का अनुभव होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से बात करें या हमसे संपर्क करें।

गर्भाशय कैंसर का जोखिम किन्हें ज्यादा होता है?

बच्चेदानी में कैंसर (गर्भाशय कैंसर) के कई जोखिम कारक होते हैं, जिन्हें हम आगे एक-एक करके समझेंगे। निम्नलिखित स्थितियों में बच्चेदानी में कैंसर की समस्या उत्पन्न होती है –

  • उम्र: जिन महिलाओं की उम्र 60 से अधिक है, उन्हें इस रोग के होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
  • अधिक वजन: अधिक वजन और मोटापा बच्चेदानी में कैंसर के साथ-साथ कई अन्य गंभीर समस्याओं को बढ़ावा दे सकता है।
  • फैमिली हिस्ट्री: बच्चेदानी के कैंसर की फैमिली हिस्ट्री होने पर समय-समय पर कैंसर की जांच जरूर कराएं।
  • मधुमेह: मधुमेह (डायबिटीज) का संबंध सीधा मोटापा से होता है, जो कि स्वयं कैंसर का एक जोखिम कारक है।
  • अंडाशय का रोग: अंडाशय के ट्यूमर के कारण शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में असामान्यताएं आती हैं, जो कैंसर का जोखिम कारक है।
  • पीरियड्स का समय: यदि किसी को भी 12 वर्ष से पहले ही पीरियड शुरू हो जाते हैं या फिर मेनोपॉज में देरी होती है, तो इसके कारण बच्चेदानी में कैंसर की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
  • गर्भधारण न करना: प्रेग्नेंट न होने के कारण शरीर में एस्ट्रोजन का खतरा बढ़ जाता है, जो कैंसर का मुख्य कारण है।
  • रेडियो फ्रीक्वेंसी थेरेपी (Radio-frequency therapy) का प्रयोग: अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार कुछ मामलों में देखा गया है कि रेडियो फ्रीक्वेंसी थेरेपी के कारण कैंसर की संभावना उत्पन्न हुई है।
  • एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी (Estrogen Replacement Therapy): इस प्रकार की थेरेपी का प्रयोग अक्सर मेनोपॉज के लक्षणों को मैनेज करने और इलाज करने के लिए होता है। प्रोजेस्टेरोन के बिना इस थेरेपी के कारण बच्चेदानी में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • टेमोक्सीफेन (Tamoxifen) का साइड इफैक्ट: यह दवाएं अक्सर ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों को दी जाती हैं। यह दवाएं स्तन कैंसर के लक्षणों से आराम तो दिलाती हैं, लेकिन इसके कारण बच्चेदानी में कैंसर का खतरा थोड़ा सा बढ़ जाता है।

कैंसर की संभावना होने पर तुरंत डॉक्टर से बात करें और चिकित्सा सहायता लें।

बच्चेदानी में कैंसर का इलाज

जैसे ही कोई रोगी हमारे पास बच्चेदानी में कैंसर के लक्षणों की शिकायत के साथ आता है, हम सबसे पहले उन लक्षणों की पहचान कर कुछ जांच का सुझाव देते हैं। सबसे पहला कार्य रोगी की फैमली हिस्ट्री और कैंसर के जोखिम कारकों के बारे में जानना होता है। इसके अतिरिक्त शारीरिक जांच के दौरान पेल्विक क्षेत्र की जांच की जाती है।

कैंसर की पुष्टि के लिए हम कुछ टेस्ट का सुझाव भी देते हैं, जैसे ब्लड टेस्ट, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसी इमेजिंग टेस्ट, या एंडोमेट्रियल बायोप्सी, इत्यादि। इन परीक्षण के परिणाम के आधार पर हम इलाज की योजना बनाते हैं।

परिणाम के आधार पर ही पता चलता है कि रोगी को इलाज के किस विकल्प की आवश्यकता है जैसे सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, हार्मोन थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी इत्यादि।

यदि इस स्थिति का जल्दी पता चल जाए तो बच्चेदानी में कैंसर का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। इसलिए देर न करें, तुरंत परामर्श प्राप्त करें!

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

बच्चेदानी में कैंसर होने पर महिलाएं खुद में अनेक लक्षणों का अनुभव करती हैं। उन लक्षणों के आधार पर बच्चेदानी में कैंसर की संभावनाओं का पता चलता है।

जब बच्चेदानी की आंतरिक कोशिकाएं असामान्य होकर अनियंत्रित रूप से विकसित होने लगती हैं, तो उनके कारण ट्यूमर का निर्माण होता है, जो बाद में कैंसर का रूप ले लेती है।

हाँ, बच्चेदानी के कैंसर को ठीक किया जा सकता है। ऐसा तभी संभव है जब स्थिति का निदान शुरुआती चरण में ही हो जाए और उसका इलाज भी तुरंत शुरू हो जाए।

गंभीरता के आधार पर बच्चेदानी में कैंसर के चार चरण होते हैं – 

  • चरण 1: इसमें कैंसर केवल बच्चेदानी में होता है।
  • चरण 2: इस चरण में कैंसर बच्चेदानी और बच्चेदानी के मुख में फ़ैल जाता है।
  • चरण 3: इसमें कैंसर का प्रसार श्रोणि के लिम्फ नोड्स में हो जाता है, लेकिन मूत्र मार्ग अभी भी इससे दूर होता है। 
  • चरण 4: इसमें कैंसर पेल्विक क्षेत्र (श्रोणि) के बाहर फैल जाता है और इससे अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते हैं।