मासिक धर्म चक्र के चरण और उनका महत्व

Dr. Sonal Chouksey
Dr. Sonal Chouksey

MBBS, DGO

16+ Years of experience
मासिक धर्म चक्र के चरण और उनका महत्व

पीरियड्स आना या समय पर न आना कई बार चिंता का कारण बन सकता है। जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स होते हैं, तो इसे उसके यौवन की शुरुआत माना जाता है। समाज में महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे शांत, धैर्यवान और सहनशील रहें। लेकिन मासिक धर्म को लेकर अब भी कई गलत धारणाएं हैं।

हर संस्कृति में इसे गलत या अशुद्ध नहीं माना जाता। जैसे, दक्षिण भारत में महिलात्व के सम्मान में तीन दिन का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान महिलाओं को आने वाले कृषि मौसम के लिए तैयार किया जाता है।

पहला पीरियड किसी भी लड़की के लिए बड़ा बदलाव होता है। यह उसके लिए नया अनुभव होता है। जैसे ही उसे पीरियड्स आते हैं, लोग उसे तरह-तरह की सलाह देने लगते हैं।

मासिक धर्म चक्र क्या है?

मासिक धर्म चक्र महिलाओं के शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों की एक प्रक्रिया है। इसमें हार्मोन, गर्भाशय और अंडाशय में बदलाव होते हैं, जो गर्भधारण की संभावना बनाते हैं। अंडाशय (ओवरी) चक्र के दौरान अंडाणु (एग) बनते और निकलते हैं। साथ ही, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर भी बदलता है।

मासिक धर्म चक्र के चरण क्या हैं?

मासिक धर्म चक्र एक प्रक्रिया है, जो हर महीने महिलाओं के शरीर में होती है। यह कई चरणों से गुजरती है और गर्भधारण की संभावना को नियंत्रित करती है। शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण एक चरण से दूसरे चरण में परिवर्तन होता है।

मासिक धर्म चक्र की गिनती पहले दिन से की जाती है, जब रक्तस्राव (ब्लीडिंग) शुरू होता है। आमतौर पर, एक महिला का चक्र 28 दिनों का होता है। यह चार चरणों में बंटा होता है:

  • मासिक धर्म चरण (दिन 1 से 5)
  • फॉलिक्युलर चरण (दिन 1 से 13)
  • ओव्यूलेशन चरण (दिन 14)
  • ल्यूटियल चरण (दिन 15 से 28)

मासिक धर्म चरण (दिन 1 से 5)

यह मासिक धर्म चक्र का पहला चरण होता है। यही वह समय होता है जब पीरियड्स शुरू होते हैं और आमतौर पर पांचवें दिन तक चलते हैं। पहली बार पीरियड्स आने पर दिमाग में यह सवाल आता है कि शरीर में ऐसा क्या होता है जिससे रक्तस्राव (ब्लीडिंग) शुरू हो जाता है।

आसान भाषा में समझें तो यह रक्त गर्भाशय की मोटी परत (यूटरस की लाइनिंग) के टूटने से निकलता है। जब गर्भधारण नहीं होता, तो यह परत शरीर को जरूरत नहीं होती और यह योनि (वजाइना) के जरिए बाहर निकलने लगती है। इस दौरान निकलने वाला रक्त मासिक धर्म द्रव (मेंस्ट्रुअल फ्लूइड), म्यूकस और गर्भाशय की कुछ ऊतकों (टिशू) का मिश्रण होता है।

लक्षण:

  • मासिक धर्म के इस पहले चरण में आमतौर पर ये लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
  • पेट में ऐंठन (क्रैम्पिंग)
  • सूजन (ब्लोटिंग)
  • सिरदर्द
  • मूड में बदलाव (मूड स्विंग्स)
  • स्तनों में कोमलता
  • चिड़चिड़ापन
  • थकान या कमजोरी
  • पीठ के निचले हिस्से में दर्द

फॉलिक्युलर चरण (दिन 1 से 13)

यह चरण भी मासिक धर्म के पहले दिन से शुरू होता है और आमतौर पर 13वें दिन तक चलता है। इस दौरान मस्तिष्क के एक हिस्से हाइपोथैलेमस से पिट्यूटरी ग्लैंड (पीयूष ग्रंथि) को एक संकेत मिलता है, जिससे फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH) रिलीज़ होता है।

FSH की वजह से अंडाशय (ओवरी) में 5 से 20 छोटे फॉलिकल्स बनते हैं। हर फॉलिकल में एक अपरिपक्व अंडाणु (अंडा) होता है, लेकिन केवल सबसे स्वस्थ अंडाणु ही पूरी तरह परिपक्व होता है। बाकी फॉलिकल्स शरीर द्वारा पुनः अवशोषित कर लिए जाते हैं। यह चरण औसतन 13-16 दिनों तक चलता है।

लक्षण:

  • ऊर्जा स्तर बढ़ना
  • त्वचा का निखार
  • यौन इच्छा (लिबिडो) में वृद्धि

ओव्यूलेशन चरण (दिन 14)

यह चरण सबसे अधिक उर्वरता (फर्टिलिटी) का समय होता है। गर्भधारण की योजना बना रहे लोगों के लिए यह सबसे उपयुक्त समय होता है।

मासिक धर्म चक्र के 14वें दिन, पिट्यूटरी ग्लैंड एक हार्मोन रिलीज करता है, जिससे अंडाशय (ओवरी) से परिपक्व अंडाणु निकलता है। यह अंडाणु फैलोपियन ट्यूब में प्रवेश करता है और गर्भाशय (यूट्रस) की ओर बढ़ता है।

अंडाणु की जीवन अवधि 24 घंटे होती है। यदि इस समय के दौरान शुक्राणु (स्पर्म) से संपर्क नहीं होता, तो यह नष्ट हो जाता है।

लक्षण:

  • सर्वाइकल म्यूकस (गाढ़े सफेद या पारदर्शी तरल) में बदलाव
  • संवेदनशीलता बढ़ना (गंध, स्वाद आदि तेज़ी से महसूस होना)
  • स्तनों में कोमलता या हल्का दर्द
  • हल्का पेट दर्द या ऐंठन
  • हल्का योनि स्राव (डिस्चार्ज)
  • हल्की मिचली या स्पॉटिंग (थोड़ा रक्तस्राव)
  • बेसल बॉडी टेम्परेचर (शरीर का तापमान) में बदलाव
  • लिबिडो में परिवर्तन (यौन इच्छा बढ़ना)

ल्यूटियल चरण (दिन 15 से 28)

इस दौरान शरीर नए मासिक चक्र की तैयारी करने लगता है। जैसे-जैसे हार्मोन का उत्पादन बढ़ता है, ऊर्जा स्तर में गिरावट आ सकती है और मासिक धर्म से जुड़े लक्षण महसूस हो सकते हैं।

जब फॉलिकल अंडाणु को छोड़ देता है, तो कॉर्पस ल्यूटियम नामक संरचना विकसित होती है। यह मुख्य रूप से प्रोजेस्टेरोन और कुछ मात्रा में एस्ट्रोजन हार्मोन रिलीज़ करती है। कॉर्पस ल्यूटियम एक सामान्य सिस्ट (थैली) होती है, जो हर महीने प्रजनन आयु की महिलाओं की ओवरी में बनती है। यह ओवरी में मौजूद कोशिकाओं से बनती है और मासिक चक्र के अंत में विकसित होती है।

लक्षण:

यदि इस चरण में गर्भधारण नहीं होता, तो आप निम्नलिखित लक्षण महसूस कर सकते हैं—

  • पेट फूलना (Bloating)
  • स्तनों में सूजन, दर्द या कोमलता
  • मूड में बदलाव
  • सिरदर्द
  • हल्का वजन बढ़ना
  • यौन इच्छा में बदलाव
  • खाने की इच्छा (विशेषकर मीठा या चटपटा)
  • नींद न आना

ओव्यूलेशन कैलकुलेटर की मदद से अपने पीरियड्स ट्रैक करना फायदेमंद हो सकता है।

निष्कर्ष

अपने शरीर को समझना बहुत ज़रूरी है। यह आपको अपने हार्मोनल बदलावों पर बेहतर नियंत्रण रखने में मदद कर सकता है। हर महिला को अपने प्रजनन स्वास्थ्य की पूरी जानकारी नहीं होती, इसलिए समय-समय पर डॉक्टर से परामर्श लेना और ज़रूरी जांच करवाना फायदेमंद हो सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

पीरियड्स के कितने दिन बाद प्रेगनेंसी के चांस बढ़ जाते हैं?

शोध के अनुसार, पीरियड्स के 6 दिन बाद गर्भधारण की संभावना बढ़ सकती है, क्योंकि इस समय आप ओव्यूलेशन पीरियड में प्रवेश करती हैं, जो कि मासिक चक्र का सबसे उपजाऊ (fertile) समय होता है।

पीरियड्स के कितने दिन बाद प्रेगनेंसी की संभावना नहीं होती?

कोई भी ऐसा समय पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होता, जब बिना गर्भनिरोधक उपाय के संबंध बनाने पर गर्भधारण की संभावना शून्य हो जाए। कुछ दिनों में संभावना कम हो सकती है, लेकिन ऐसा कोई समय नहीं है जब गर्भधारण बिल्कुल असंभव हो।

मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं ओव्यूलेशन में हूं?

ओव्यूलेशन के कुछ संकेत होते हैं, जिनसे आप अंदाजा लगा सकती हैं—

  • बेसल बॉडी टेम्परेचर (शरीर का तापमान) पहले थोड़ा गिरता है और फिर बढ़ जाता है।
  • सर्विक्स (गर्भाशय का द्वार) नरम हो जाता है और थोड़ा खुलने लगता है।
  • सर्वाइकल म्यूकस (योनि स्राव) पतला और पारदर्शी हो जाता है।
  • निचले पेट में हल्का दर्द या ऐंठन महसूस हो सकती है।

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