प्रेगनेंसी का तीसरा महीना के लक्षण, शिशु का विकास, डाइट और सावधानियां

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Author : Dr. Nidhi Gohil November 21 2024
Dr. Nidhi Gohil
Dr. Nidhi Gohil

MBBS, MS (Obstetrics & Gynaecology), Fellowship in IVF

5+Years of experience:
प्रेगनेंसी का तीसरा महीना के लक्षण, शिशु का विकास, डाइट और सावधानियां

प्रेगनेंसी नौ महीने की एक लंबी प्रक्रिया है जिस दौरान महिला के शरीर और उनके गर्भ में पल रहे शिशु में अनेक बदलाव आते हैं। इस दौरान, महिला को ढेरों बातों का ध्यान रखना होता है ताकि प्रेगनेंसी में किसी तरह की कोई समस्या ना आए और डेलिवरी सुरक्षित तरह पूरी हो।

इस ब्लॉग में हम प्रेगनेंसी के तिरसे महीने में होने वाले बदलाव के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, यह भी जानेंगे कि इस दौरान महिला को कौन से लक्षण अनुभव होते हैं, उसका खानपान कैसे होना चाहिए और किन बातों का ख़ास ध्यान रखना चाहिए आदि।

प्रेगनेंसी का तीसरा महीना कैसा होता है?

प्रेगनेंसी के नौ महीनों को तीन भागों में बांटा गया है जिसे हम पहला ट्राइमेस्टर, दूसरा ट्राइमेस्टर और तीसरा ट्राइमेस्टर के नाम से जानते हैं। शुरुआती तीन महीने को पहला ट्राइमेस्टर (First Trimester), चार से छः महीने तक की अवधि को दूसरा ट्राइमेस्टर (Second Trimester) और अंत के तीन महीनों को तीसरा ट्राइमेस्टर (Third Trimester) में विभावित किया गया है।

पहला ट्राइमेस्टर में आने वाले तीसरा महीना, प्रेगनेंसी की शुरुआत है। इस दौरान, शिशु का विकास होता है, महिला के शरीर में हार्मोनल उचार चढ़ाव होता है जिससे उसे अनेक लक्षण अनुभव होते हैं। इसके बारे में हम नीचे विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में होने वाले लक्षण

हार्मोन में उतार चढ़वा के कारण, प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में महिला खुद में कुछ लक्षणों को अनुभव करती है। इसमें मुख्य रूप से निम्न शामिल हैं:

  1. कब्ज: जब एक महिला गर्भवती होती है तो उसके शरीर में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का निर्माण बढ़ जाता है। इससे उसकी पाचन शक्ति धीमी और कमज़ोर हो जाती है जिससे कब्ज की शिकायत पैदा होती है। अगर आप भी कब्ज से परेशान हैं तो अपने डॉक्टर इस बारे में बात करें। वे आपको कुछ दवा और जीवनशैली में बदलाव जैसे कि तैलीय और मसालेदार चीज़ों से परहेज़, पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन, फल और सब्जियों का सेवन, सिगरेट और अत्याधिक कॉफी से परहेज़ आदि का सुझाव देंगे जिससे कब्ज की समस्या से राहत मिलेगी।
  2. पेट दर्द: प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में, बच्चेदानी में पल रहे शिशु का आकार बढ़ता है, जो लिगामेंट्स पर दबाव पैदा करता है। लिगामेंट्स पर दवाब और खिचाव से पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है। पेट में दर्द होने पर आपको डरने या घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कुछ दिनों में ये अपने आप ही दूर हो जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है या तेज़ दर्द है तो बिना देरी किए अपने डॉक्टर से मिलें और उन्हें इस बारे में बताएं।
  3. सीने में जलन: बच्चेदानी में पल रहे शिशु का आकार बढ़ने से बच्चेदानी का आकार भी बढ़ता है, जिससे पाचन क्रिया प्रभावित होती है। इससे खाना हजम करने वाला एसिड ऊपर की तरफ आने लगता है जो सीने में जलन पैदा करता है। प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में सीने में जलन होना सामान्य है। साथ ही, बच्चेदानी का आकार बढ़ने के कारण रक्त वाहिकाएं (Blood Vessels) सिकुड़ जाती हैं जिससे बदल सर्कुलेशन धीमी और पैरों में सूजन होती है।
  4. मॉर्निंग सिकनेस: यह प्रेगनेंसी के शुरुआती सबसे सामान्य लक्षणों में से एक है। प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में यह चरम पर हो सकता है, लेकिन तीसरा सप्ताह यानी 12वां सप्ताह ख़तम होते-होते यह लक्षण भी दूर हो जाता है। अक्सर मॉर्निंग सिकसेस के साथ-साथ उल्टी भी होती है। अगर आप इस लक्षण से परेशान हैं तो अपने डॉक्टर से इस बारे में अवश्य बात करें। वो कुछ दवा या उपाय सुझाव दे सकते हैं जिससे आपको इस लक्षण से राहत पाने में मदद मिलेगी।
  5. कमज़ोरी और थकान: प्रेगनेंसी जब अपने तीसरे महीने में पहुँचती है तो गर्भ में पल रहे शिशु को पोषक तत्वों कोई आवश्यकता होती है ताकि वह प्रॉपर तरीके से विकसित हो सके। पोषक तत्वों की खुराक को पूरा करने के लिए शरीर अधिक मात्रा में खून का उत्पादन करता है। इससे शरीर का ब्लड प्रेशर और शुगर दोनों प्रभावित होता है जिसके कारण महिला को थकान और कमज़ोरी महसूस होती है।
  6. बार-बार पेशाब लगना: जैसा कि हमने ऊपर बताया कि प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में, बच्चेदानी में पल रहे शिशु को पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए शरीर में एचसीजी हार्मोन उत्पन्न होता है जो खून के उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार है। खून का उत्पादन होने से महिला के मूत्र पथ (Urinary Track) पर दबाव पड़ता है जिसके कारण बार-बार पेशाब करने की ज़रूरत महसूस होती है। प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में बार-बार पेशाब लगना सामान्य है। अगर आपको पेशाब के रंग में कोई असामान्य बदलाव दिखे तो इस बारे में डॉक्टर से अवश्य बात करें।
  7. वाइट डिस्चार्ज: जब एक महिला प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में पहुँचती है तो उसे अनेक लक्षण अनुभव होते हैं, योनि से सफ़ेद रंग का गाढ़ा पानी निकलना भी उन्हीं में शामिल है। प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में, महिला के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ता है और योनि की दीवार खुलती है जिससे वाइट डिस्चार्ज होता है। यह डिस्चार्ज संक्रमण को बच्चेदानी में जाने से रोकता है। अगर आप इसे खुद में देखती हैं तो डरने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप फिर भी परेशान हों तो डॉक्टर से मिलकर उनसे इस बारे में बात कर सकती हैं। अगर इस डिस्चार्ज के साथ गंध आए और खुजली हो तो डॉक्टर से मिलना इस बारे में बात करना आवश्यक हो जाता है।

ऊपर दिए गए सभी लक्षण सामान्य हैं और ये किसी भी ख़तरे की ओर इशारा नहीं करते हैं। इन सबके अलावा आप अन्य लक्षण भी अनुभव कर सकती हैं। लक्षण से संबंधित मन में कोई भी प्रश्न या चिंता हो तो बिना संकोच किए अपने डॉक्टर से मिलें और उनसे बात करें।

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में क्या होता है?

इस दौरान महिला के शरीर और उसके गर्भ में पल रहे शिशु में ढेरों बदलाव आते हैं। महिला में जो बदलाव आते हैं उनके बारे में हम ऊपर (लक्षण वाले सेक्शन में) बात कर चुके हैं। अब बात करते हैं शिशु के शरीर में आने वाले बदलाव यानी उसके विकास के बारे में। प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में शिशु में निम्न बदलाव आते हैं:

  • शिशु का वजन 20-30 ग्राम और लंबाई लगभग 2-3 इंच होता है
  • आँखें और किडनी बननी शुरू हो जाती हैं
  • मांसपेशियों और हड्डियों का ढांचा भी बनने लगता है
  • जबाव, जबड़े और जननांग का विकास शुरू हो जाता है
  • उँगलियों के निशान बनने लगते हैं और दिल काम करना शुरू कर देता है
  • इस दौरान, शिशु की त्वचा पतली और पारदर्शी होती है जिसके आसपार नसें दिखाई देती हैं

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में शिशु का विकास शुरू हो जाता है और महिला इस बदलाव को आसानी से महसूस कर सकती है।

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में कैसे सोना चाहिए?

जैसा कि हमने पहले ही बताया तीसरा महीना प्रेगनेंसी की शुरुआत होती है। इस दौरान पेट का भार (वजन) ज़्यादा नहीं होता है। इसलिए इस दौरान गर्भवती महिला पीठ के बल सीधा या किसी भी करवट नींद सो सकती है। नींद सोने को लेकर इस दौरान कोई ख़ास दिशा निर्देश नहीं है।

हालाँकि, अगर आप चाहें तो करवट लेकर सो सकती हैं। करवट लेकर सोने से बच्चेदानी में खून का प्रवाह बेहतर होता है जो शिशु को बढ़ने में मदद और संकोचन का खतरा कम करता है। इतना ही नहीं, बायीं तरफ करवट लेकर सोने से रक्त प्रवाह सही होता है और शिशु को पर्याप्त मात्रा ऑक्सीजन सप्लाई होती है।

साथ ही, बायीं तरफ करवट लेकर सोते समय कम से कम दो तकिये का इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे पेल्विक क्षेत्र पर कम दबाव पड़ता है। करवट झटके से ना बदलें और कम से कम 8-9 घंटे की नींद लें। इसके अलावा, अगर आपको सोने में किसी तरह की कोई दिक्कत होती है तो अपने डॉक्टर से मिलें और उनसे इस बारे में बात करें।

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में पेट दर्द

प्रेगनेंसी की शुरुआती स्टेज यानी तीसरे महीने में महिला के शरीर में अनेक बदलाव होते हैं, जैसे कि हार्मोनल बदलाव, अत्यधिक रक्त का उत्पादन और बच्चेदानी का आकार बढ़ना आदि। इन सबके कारण महिला को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, पेट में दर्द होना भी उनमें शामिल है। यह एक सामान्य समस्या है जो किसी खतरा की ओर इशारा नहीं करता है, इसलिए आपको डरने या घबराने की ज़रूरत नहीं है।

पेट दर्द का असली कारण कब्ज और बच्चेदानी का आकार बढ़ना है। हालाँकि, कुछ मामलों में अन्य कारणों से भी पेट दर्द की शिकायत हो सकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि आप दर्द पर ध्यान दें। अगर दर्द तेज़ है या लगातार रहता है तो आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए, ताकि डॉक्टर समय पर इसका सही इलाज कर सकें।

प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में क्या खाना चाहिए?

प्रेगनेंसी का तीसरा महीना आवश्यक होता है। इस दौरान महिला और शिशु दोनों को पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए महिला को खानपान पर ख़ास ध्यान देना होता है। जो महिला प्रेगनेंसी के तीसरे माह में है उसे अपनी डाइट में निम्न को शामिल करने का सुझाव दिया जाता है:

  1. पानी पीएं: इस दौरान शरीर को पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। खुद को हाइड्रेट रखें और जब भी महसूस हो पानी पीएं। पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से हाइड्रेशन के साथ-साथ कब्ज की समस्या भी दूर रहती है।
  2. फल और सब्जी: फाइबर से भरपूर चीज़ें जैसे कि फलों और सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल करें। ये बच्चेदानी की दीवार को मज़बूत बनाते हैं जो शिशु के विकास के लिए ज़रूरी है। अपनी ख़ास ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए डायटीशियन से परामर्श कर सकती हैं।
  3. दूध और केला: कैल्शियम से भरपूर चीज़ें जैसे कि दूध और इससे बनने वाले अन्य पदार्थ एवं केले का सेवन करें, क्योंकि इनसे हड्डियां मज़बूत होती है। ये मां और शिशु दोनों के लिए आवश्यक हैं।
  4. मीट और मछली: प्रेगनेंसी के तीसरे महीने में लीन मीट, चिकन और मछली का सेवन आवश्यक होता है, क्योंकि इनमें प्रोटीन की अधिक मात्रा होती है। डाइट चार्ट प्लान के लिए डायटीशियन की मदद लें।

प्रेगनेंसी नौ महीने एक लंबी प्रक्रिया है जिस दौरान महिला को खुद के साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशु का ख़ास ध्यान रखना होता है। कुछ लक्षण सामान्य हैं, अगर आप खुद में असामान्य लक्षण अनुभव करती हैं तो तुरंत डॉक्टर से मिलकर उस बारे में बात करनी चाहिए।

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