डिलीवरी ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक नई ज़िंदगी इस दुनिया में दाख़िल होती है। हर महिला के लिए डिलीवरी का अनुभव अलग-अलग हो सकता है, लेकिन जन्म की प्रक्रिया के पीछे की बायोलॉजिकल प्रोसेस एक जैसी होती है। इस लेख में हम जानेंगे कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं, डिलीवरी की अलग-अलग अवस्था क्या होती हैं और शरीर में किस तरह के बदलाव होते हैं। साथ ही जानेंगे कि जुड़वा बच्चे पैदा होने की वजहें क्या हैं और इसकी प्रक्रिया क्या है।
बच्चे कैसे होते हैं?
बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया काफ़ी लंबी और जटिल होती है। कंसीव करने (गर्भ धारण करने) से लेकर डिलीवरी तक इसे कई चरणों में बांटा जा सकता है। नीचे दिए गए चार्ट की मदद से आइए इस प्रक्रिया को आसानी से समझते हैं:
कंसीव करना: सफ़र की शुरुआत
चरण | क्या होता है |
फ़र्टिलाइज़ेशन | अंडे को स्पर्म फ़र्टिलाइज़ करता है और ज़ाइगोट बनता है |
इंप्लांटेशन | फ़र्टिलाइज़ हुआ अंडाणु यूटरस (बच्चेदानी) में पहुंचता है |
हार्मोनल बदलाव | एचसीजी जैसे प्रेगनेंसी हार्मोन बनते हैं, ताकि एम्ब्रियो को विकसित होने में मदद मिल सके |
प्रेगनेंसी: समय के साथ बच्चे का विकास
तिमाही | विकास |
पहली | एम्ब्रियो में हल्का विकास होता है। दिल, दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड बन जाता है |
दूसरी | बच्चे का तेज़ी से विकास होता है, अंग मज़बूत होने लगते हैं और मां को बच्चे की गतिविधियां महसूस होने लगती हैं |
तीसरी | बच्चा और बड़ा होता है, अंगों में जन्म के लायक़ विकास होता है और बच्चे का सिर नीचे की तरफ़ आ जाता है |
बच्चे कैसे पैदा होते हैं?
ऊपर बताए गए दो चरण के बाद अब शुरू होता है बच्चे के जन्म की प्रक्रिया। इस प्रक्रिया को मोटे तौर पर तीन अलग-अलग स्टेज में बांटा जा सकता है: लेबर, बच्चे की डिलीवरी और प्लेसेंटा की डिलीवरी।हर चरण अपने-आप में बेहद महत्वपूर्ण है।
आइए हम विस्तार तरीक़े से हर स्टेज को समझते हैं:
लेबर: पहला चरण
लेबर असल में बच्चे के जन्म का पहला और सबसे लंबा चरण होता है। यह बच्चे पैदा होने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है और यह कुछ घंटों से लेकर एक दिन से भी ज़्यादा समय तक चल सकता है। लेबर को यूटरस (गर्भाशय) में होने वाला नियमित संकुचन (कॉन्ट्रैक्शन) कहा जा सकता है, जो बच्चे को बर्थ कैनाल की ओर धकेलने में मदद करता है। लेबर को भी आमतौर पर तीन चरणों में बांटा जाता है: शुरुआती लेबर, ऐक्टिव लेबर और ट्रांजिशन
शुरुआती लेबर
यह लेबर की शुरुआत होती है, जब गर्भाशय का सर्विक्स नरम और पतला होने के साथ-साथ धीरे-धीरे फैलने लगता है। शुरुआती लेबर के दौरान कॉन्ट्रैक्शन हल्का और अनियमित हो सकता है। महिलाओं को पेट में ऐंठन के साथ-साथ पीठ और कमर में दर्द महसूस होता है। यह चरण कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक चल सकता है। इस समय तक सर्विक्स लगभग 3-4 सेंटीमीटर फैल जाता है।
ऐक्टिव लेबर
जैसे-जैसे लेबर का सफर आगे बढ़ता है, कॉन्ट्रैक्शन की गति भी तीव्र और नियमित होने लगती है। इस चरण में सर्विक्स 4 से 7 सेंटीमीटर तक फैल जाता है। महिलाओं के शरीर में दर्द पहले से बढ़ जाता है। ऐक्टिव लेबर आम तौर पर 4 से 8 घंटे तक चलता है, लेकिन यह अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग हो सकता है। इस दौरान, बच्चा बर्थ कैनाल की तरफ़ नीचे को बढ़ जाता है, क्योंकि कॉन्ट्रैक्शन बच्चे को नीचे की ओर धकेलने में मदद करता है।
ट्रांजिशन
यह लेबर का आख़िरी चरण होता है और इस दौरान सर्विक्स 10 सेंटीमीटर तक फैल जाता है। इस चरण में कॉन्ट्रैक्शन अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है और महिलाओं को बहुत ज़्यादा थकान और बेचैनी हो सकती है। बच्चे का सिर बर्थ कैनाल की ओर बढ़ता है और मां को आमतौर पर बच्चे को बाहर पुश करने की तीव्र इच्छा होने लगती है। ट्रांजिशन का चरण आमतौर पर 15 मिनट से लेकर एक घंटे तक चलता है।
शिशु का जन्म: दूसरा चरण
सर्विक्स के पूरी तरह फैलने के बाद डिलीवरी का दूसरा चरण शुरू होता है- शिशु का जन्म। इस चरण को आमतौर पर “पुशिंग स्टेज” कहा जाता है, क्योंकि मां लगातार बच्चे को बर्थ कैनाल के रास्ते से बाहर निकालने की कोशिश करती रहती हैं।
पुशिंग की प्रक्रिया
हर कॉन्ट्रैक्शन के दौरान महिलाएं पेट की मांसपेशियों का इस्तेमाल करके बच्चे को नीचे की ओर धकेलने की कोशिश करती हैं। बच्चा जब बर्थ कैनाल से बाहर आता है, तो आम तौर पर सबसे पहले उसका सिर दिखाई देता है और यह डिलीवरी का सबसे चरम स्टेज होता है। सिर और कंधे के बाहर निकलते ही बाक़ी शरीर तेज़ी से बाहर निकल आता है। इसके बाद, शिशु को मां के सीने पर रखा जाता है, जो स्किन-टू-स्किन (त्वचा से त्वचा का संपर्क) की शुरुआत होती है।
नाल कटना
बच्चा पैदा होने के बाद नाल को क्लैंप किया जाता है और फिर उसे काट दिया जाता है, ताकि बच्चा प्लेसेंटा से अलग हो जाए। नाल प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मुहैया कराने में मुख्य भूमिका निभाता है, लेकिन पैदा होने के बाद बच्चे को इसकी ज़रूरत नहीं होती है।
प्लेसेंटा की डिलीवरी: तीसरा चरण
प्रसव के तीसरे चरण में प्लेसेंटा की डिलीवरी होती है, जो बच्चे के जन्म के बाद होता है। प्लेसेंटा प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे को पोषण और ऑक्सीजन मुहैया कराने में मदद करता है और बच्चे के पैदा होने के बाद यूटरस को प्लेसेंटा की ज़रूरत नहीं रहती है। इसलिए कॉन्ट्रैक्शन की मदद से प्लेसेंटा यूटरस से बाहर निकल जाता है। प्लेसेंटा आमतौर पर बच्चे के जन्म के 5 से 30 मिनट के भीतर बाहर आ जाता है। डॉक्टर यह सुनिश्चित करते हैं कि पूरा प्लेसेंटा बाहर निकल गया हो, ताकि आगे ज़्यादा ब्लीडिंग का ख़तरा न हो और मां सुरक्षित और स्वस्थ रहें।
जुड़वा बच्चे कैसे पैदा होते हैं?
जुड़वा बच्चों का जन्म एक दिलचस्प और यूनिक घटना होती है। डिलीवरी की प्रक्रिया में समान ही होती है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अंतर फिर भी देखे जाते हैं। जुड़वां बच्चे को कनसीव (गर्भधारण) करना ज़्यादा जटिल होता है और इसमें अतिरिक्त जोखिम भी होते हैं। आइए, समझते हैं कि जुड़वा बच्चे कैसे पैदा होते हैं, उनके जन्म की प्रक्रिया किस तरह अलग होती है और इनकी डिलीवरी कैसे होती है।
जुड़वा बच्चों के प्रकार: मोनोज़ायगोटिक और डाइज़ायगोटिक ट्विन
जुड़वां बच्चों के दो मुख्य प्रकार होते हैं: मोनोज़ायगोटिक यानी आइडेंटिकल ट्विन और डाइज़ायगोटिक यानी फ़्रैटर्नल ट्विन।
मोनोज़ायगोटिक ट्विन
मोनोज़ायगोटिक ट्विन को हिंदी में समानजाती जुड़वा भी कहा जाता है। यह तब होता है, जब एक ही फ़र्टिलाइज़्ड (निषेचित) अंडाणु दो अलग-अलग एम्ब्रियो में विभाजित हो जाता है और फिर दोनों एम्ब्रियो अलग-अलग विकसित होते हैं। चूंकि ये एक ही निषेचित अंडाणु से पैदा होते हैं, इसलिए मोनोज़ायगोटिक या आइडेंटिकल ट्विन के जीन समान होते हैं। ये आमतौर पर एक ही प्लेसेंटा शेयर करते हैं। हालंकि, कुछ मामलों में प्लेसेंटा भी अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि अंडाणु का विभाजन कब हुआ। आइडेंटिकल ट्विन हमेशा एक ही लिंग यानी सेक्स के होते हैं और एक जैसे दिखते हैं।
डाइज़ायगोटिक ट्विन
इसे हिंदी में असमानजाती जुड़वा भी कहते हैं। डाइज़ोयगोटिक ट्विन तब पैदा होते हैं, जब दो अलग-अलग अंडाणु दो अलग-अलग शुक्राणुओं से फ़र्टिलाइज़ यानी निषेचित होते हैं। हर बच्चा अलग-अलग विकसित होता है और उनके पास अलग-अलग प्लेसेंटा होती हैं। असमानजाती जुड़वा के जीन एक जैसे नहीं होते। ये एक या अलग-अलग लिंग (सेक्स) के हो सकते हैं। इस प्रकार के जुड़वा बच्चों की संभावन तब बढ़ जाती है, जब कोई महिला एक ही महीने में दो अंडाणु रिलीज़ करे।
जुड़वा बच्चे कैसे कनसीव होते हैं?
जुड़वा बच्चे कनसीव करने के तरीक़े अलग-अलग होते हैं। डाइज़ायगोटिक ट्विन तब पैदा होते हैं, जब दो अंडाणु अलग-अलग फ़र्टिलाइज़ किए गए हों। इसके पीछे आनुवांशिक (जेनेटिक) कारण हो सकते हैं या फिर फ़र्टिलिटी ट्रीटमेंट की वजह से भी यह स्थिति पैदा हो सकती है।
मोनोज़ायगोटिक ट्विन संयोग से बनते हैं और इसके पीछे कोई जेनेटिक वजहें नहीं होतीं। फ़र्टिलाइज़ हुआ अंडाणु अगर दो एम्ब्रियो में विभाजित हो जाए, तो यह स्थिति पैदा हो सकती है।
जुड़वा बच्चों के साथ प्रेगनेंसी: जोखिम और ध्यान में रखने वाली बातें
जुड़वा बच्चों वाली प्रेगनेंसी को ज़्यादा जोखिम भरा माना जाता है और इस दौरान ज़्यादा सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। जुड़वा बच्चों की प्रेगनेंसी के दौरान कुछ जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे:
- प्रीमैच्योर बर्थ: जुड़वा बच्चों के साथ प्रेगनेंट महिलाओं में समय से पहले डिलीवरी की संभावना ज़्यादा होती है। ज़्यादातर जुड़वा बच्चे 37 हफ़्ते से पहले ही पैदा हो जाते हैं और उन्हें एनआईसीयू में रखने की ज़रूरत पड़ सकती है।
- हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़: जुड़वा बच्चे वाली मां को हाई ब्लड प्रेशर का ख़तरा ज़्यादा होता है। साथ ही, उन्हें गैस्टेशनल डायबिटीज़ और प्रीक्लैम्शिया का भी जोखिम हो सकता हैं।
- वज़न में ज़्यादा बढ़ोतरी: जुड़वा बच्चों वाली महिलाओं का वज़न अमूमन ज़्यादा बढ़ता है।
- बच्चे का कम वज़न: गर्भ में सीमित जगह और संसाधनों की वजह से जुड़वा बच्चों का वजन अमूमन कम होता है। इस वजह से जन्म के बाद बच्चों में जोखिम की आशंका बढ़ जाती है।
जुड़वा बच्चों की डिलीवरी
जुड़वां बच्चों के लिए लेबर और डिलीवरी की प्रक्रिया, थोड़े अंतर के साथ एक जैसी ही होती है। इसमें बच्चों की पोज़िशन बहुत मायने रखती है। अगर पहले बच्चे का सिर नीचे की तरफ़ नहीं है, तो सिज़ेरियन ज़रूरी हो जाता है, लेकिन अगर दूसरे बच्चे का सिर नीचे नहीं होता, तो नॉर्मल डिलीवरी मुमकिन हो सकती है, लेकिन इसमें ख़तरा ज़्यादा रहता है।
जुड़वा बच्चों के जन्म में अतिरिक्त एहतियात बरतना पड़ता है क्योंकि अमूमन पहले बच्चे के तुरंत बाद दूसरे बच्चे का जन्म होता है। इसलिए, सावधानी और निगरानी की ज़रूरत लंबे समय तक बनी रहती है।
निष्कर्ष
बच्चे का जन्म एक बेहद ख़ास पल होता है, लेकिन इस प्रक्रिया को समझना, शारीरिक बदलावों को जानना और सही जानकारी रखना हर मां के लिए ज़रूरी है। जुड़वा बच्चों के मामले में तो इस तरह के एहतियात और बढ़ जाते हैं। इसलिए, सही जानकारी रखना और डॉक्टर से लगातार संपर्क बनाए रखना ज़रूरी है।