गर्भपात या अबॉर्शन के बाद महिलाओं के अंदर अक्सर शारीरिक, हार्मोनल और मानसिक बदलाव आते हैं। बदलाव का यह सिलसिला कुछ दिनों से लेकर कई महीनों तक चल सकता है। इन बदलावों की वजह से पीरियड, स्वास्थ्य और संपूर्ण प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है। साथ ही, महिलाओं के मन में तरह-तरह की चिंताएं सताने लगती हैं और इन्हीं चिंताओं में से एक पीरियड से जुड़ी होती है। कई महिलाओं को यह ख़याल आता है कि बच्चा गिराने के बाद कितने दिनों बाद पीरियड आता है। इस लेख में हम गर्भपात यानी एबॉर्शन से जुड़े इसी तरह के सवालों के जवाब देंगे। साथ ही जानेंगे कि गर्भपात के बाद पीरियड को प्रभावित करने वाले कारक क्या-क्या हैं, रिकवरी कितने दिनों में होती है और इस प्रक्रिया के दौरान आपको क्या करना चाहिए? इसके अलावा, वैज्ञानिक तथ्यों और मिथ्स एवं फ़ैक्ट्स पर भी बात करेंगे।
गर्भपात का पीरियड के ऊपर असर को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि प्रेगनेंसी का पीरियड के ऊपर क्या असर पड़ता है।
पीरियड मुख्य रूप से हार्मोन की जटिल प्रक्रिया से संचालित होता है:
प्रेगनेंसी के दौरान ये हार्मोन यूटरस में एम्ब्रियो के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करते हैं। गर्भपात के बाद इन हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है और इसी वजह से कुछ समय के लिए पीरियड रुक जाता है। सीधी वजह यह है कि शरीर को इन हार्मोन को दोबारा संतुलित करने में समय लगता है।
गर्भपात के बाद, शरीर में हार्मोन के स्तर को सामान्य करने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें ओव्यूलेशन की वापसी एक महत्वपूर्ण चरण है, क्योंकि पीरियड इसके बाद ही दोबारा शुरू हो सकता है। यह प्रक्रिया कई चीज़ों पर निर्भर करती है, जैसे गर्भपात किस तरह हुआ या फिर महिला का स्वास्थ्य कैसा है।
ज़्यादातर मामलों में पीरियड्स, गर्भपात के 4 से 8 हफ़्ते के भीतर शुरू हो जाता है। हालांकि, यह समय-सीमा अलग-अलग वजहों से भिन्न-भिन्न हो सकती है। जैसे:
अमेरिकन जर्नल ऑफ़ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में छपी एक रिसर्च के मुताबिक़ एबॉर्शन के बाद दो हफ़्ते में ओव्यूलेशन की प्रक्रिया दोबारा शुरू हो सकती है। पहले पीरियड्स का समय इस पर निर्भर करता है कि आपके शरीर में ओव्यूलेशन फिर से कब शुरू होता है।
एबॉर्शन के बाद पहले पीरियड में किन चीज़ों को लेकर तैयार रहें:
गर्भपात के बाद होने वाली ब्लीडिंग पीरियड्स की ब्लीडिंग से अलग होती है। यह शरीर से प्रेगनेंसी के बचे हुए टिशू को बाहर निकालने और यूटरस को ठीक करने का तरीक़ा है। आइए एबॉर्शन के बाद और पीरियड की ब्लीडिंग के बीच अंतर को समझते हैं:
एबॉर्शन के बाद की ब्लीडिंग | पीरियड्स की ब्लीडिंग |
एबॉर्शन के तुरंत बाद शुरू हो जाती है | ओव्यूलेशन की प्रक्रिया शुरू होने पर होती है |
दो हफ़्ते तक चल सकती है | 3-7 दिनों तक चल सकती है |
इसमें थक्के और टिशू के हिस्से हो सकते हैं | इसमें सिर्फ़ एंडोमेट्रियल लाइनिंग होती हैं |
अगर आपको नीचे दिए गए लक्षणों में से कोई भी दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ऐसे मामलों को नज़रअंदाज़ न करें, क्योंकि ये घातक हो सकते हैं:
आम तौर पर हर तरह के एबॉर्शन के दो हफ़्ते बाद शरीर रिकवर कर जाता है, लेकिन यह एबॉर्शन के टाइप पर काफ़ी हद तक निर्भर करता है।
2020 में बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया कि अगर सुरक्षित गर्भपात कराया जाए, तो महिलाओं को मानसिक तनाव कम होती है। हालांकि, इस रिसर्च में यह बात भी कही गई कि सुरक्षित गर्भपात की व्यवस्था दुनिया के बहुत सारे इलाक़ों में नहीं है और इस वजह से महिलाओं को मानसिक तनाव का ज़्यादा सामना करना पड़ता है। रिसर्च बताती है कि अनचाही प्रेगनेंसी के मामले में सामाजिक कलंक जैसी भावनाओं का असर भी महिलाओं की दिमाग़ी सेहत के ऊपर पड़ता है। इसलिए, ऐसे पल में पीड़ित महिला को भावनात्मक समर्थन की दरकार होती है।
अगर 8 हफ़्तों के अंदर पीरियड्स शुरू नहीं होते हैं, तो डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है। इसके पीछे ये संभावित कारण हो सकते हैं:
अबॉर्शन के तुरंत बाद सेक्स करने से बचना चाहिए। डॉक्टर आम तौर पर अबॉर्शन के बाद कम से कम दो हफ़्तों तक संभोग से बचने की सलाह देते हैं। इस तरह के एहतियात बरतने से इनफ़्केशन की गुंजाइश कम हो जाती है और यूटरस को ठीक होने के लिए ज़रूरी समय मिल जाता है। ऐसी सावधानी बरतने से न सिर्फ़ यूटरस, बल्कि सर्विक्स को भी सामान्य होने के लिए ज़रूरी समय मिल जाता है।
28 साल की मीरा पेशे से एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। उन्होंने सात हफ़्ते की प्रेगनेंसी के बाद दवाइयों की मदद से एबॉर्शन करवाया। उनकी रिकवरी प्रक्रिया इस तरह की रही:
Ø पहला दिन: भारी ब्लीडिंग और तेज़ ऐंठन।
Ø चौथा हफ़्ता: हल्की ब्लीडिंग जारी रही, लेकिन पीरियड्स नहीं आए।
Ø छठा हफ़्ता: पीरियड शुरू हुआ, लेकिन यह सामान्य से लंबा और डिसचार्ज काफ़ी गाढ़ा था।
मीरा के डॉक्टर ने उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां शुरू करने की सलाह दी, जिससे बाद के पीरियड साइकल को नियंत्रित करने में मदद मिली।
35 साल की शिक्षिका रितिका ने सर्जरी के ज़रिए एबॉर्शन कराया, लेकिन पीरियड आने में काफ़ी देर लगी। अल्ट्रासाउंड से पता चला कि उनके शरीर में अभी कुछ टिशू बचे रह गए हैं, जिस वजह से उन्हें और ज़्यादा इलाज की ज़रूरत पड़ी। उनका पीरियड दस हफ़्ते बाद वापस आया। रितिका ने मानसिक तनाव से निपटने के लिए परामर्श लिया, जिससे उन्हें रिकवरी करने में आसानी हुई।
जैसे ही ओव्यूलेशन की प्रक्रिया फिर से शुरू होती है, गर्भधारण करने की संभावना दोबारा बन जाती है। यह प्रक्रिया आम तौर पर गर्भपात के दो हफ़्ते बाद होता है। एबॉर्शन के बाद, दोबारा गर्भधारण की योजना बनाने वाले लोगों को इन दो बातों का ख़याल रखना चाहिए:
मिथ्स | फ़ैक्ट्स |
गर्भपात के बाद दोबारा प्रेगनेंट होने में कठिनाई आती है | सुरक्षित तरीक़े से कराए गए अबॉर्शन का असर प्रजनन क्षमता के ऊपर नहीं पड़ता। |
एबॉर्शन के बाद जब तक पीरियड न आए, आप प्रेगनेंट नहीं हो सकतीं | ऐसा ज़रूरी नहीं है। एबॉर्शन के दो हफ़्ते के अंदर ओव्यूलेशन की प्रक्रिया दोबारा शुरू हो सकती है, जिससे पीरियड आने से पहले ही आपके प्रेगनेंट होने की संभावना बन सकती है। |
गर्भपात के बाद अगर पीरियड बिल्कुल अनियमित नहीं होना चाहिए | कुछ समय के लिए अगर अनियमित है, तो यह सामान्य बात है, लेकिन अगर 2-3 महीने बाद भी अनियमित पीरियड आते हैं, तो डॉक्टर से संपर्क करें। |
जवाब: हां, मानसिक स्थिति हर व्यक्ति की अलग-अलग हो सकती है, लेकिन तनाव होना सामान्य है। अगर आपको ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है, तो काउंसलिंग लें। इससे रिकवरी में मदद मिलेगी।
जवाब: संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए, कम से कम दो हफ़्ते तक टैंपोन के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
जवाब: पहला पीरियड गाढ़ा और भारी हो सकता है, लेकिन उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो डॉक्टर से मिलें।
गर्भपात के बाद आम तौर पर चार से आठ हफ़्तों के भीतर पीरियड्स लौट आते हैं। हालांकि, यह अवधि एबॉर्शन के प्रकार, प्रेगनेंसी की अवधि और निजी स्वास्थ्य जैसी चीज़ों से तय होती है। याद रखें कि इसके बाद होने वाले पहले पीरियड में आपको ब्लीडिंग या फ़्लो असामान्य दिख सकता है, लेकिन अगर दो-तीन महीने बाद भी पीरियड्स असामान्य दिखते हैं, तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। गर्भपात ज़िंदगी का एक बड़ा फ़ैसला है, इसलिए इससे जुड़ी जानकारी रखें, डॉक्टर से खुलकर बात करें और सबसे ज़रूरी बात कि मानसिक तौर पर मज़बूत रहें। अगर मानसिक रिकवरी में दिक़्क़तें आ रही हैं, तो काउंसलिंग का विकल्प आज़माने में ज़रा भी संकोच न करें।
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