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प्रेगनेंसी का छठा महीना – 6 Month Pregnancy in Hindi: लक्षण, विकास, डाइट और सावधानियां

प्रेगनेंसी का छठा महीना – 6 Month Pregnancy in Hindi: लक्षण, विकास, डाइट और सावधानियां

Dr. Rakhi Goyal
Dr. Rakhi Goyal

MBBS, MD (Obstetrics and Gynaecology)

23+ Years of experience

प्रेगनेंसी का छठा महीना कई मायनों में बेहद अहम होता है। इस समय तक आप प्रेगनेंसी का आधा सफ़र पार कर चुकी होती हैं और आपके शिशु का विकास कई स्तर पर साफ़ दिखने लगता है। शिशु का विकास अब उस दिशा में बढ़ना शुरू होता है, जब वह गर्भ के बाहर जीवन जीने के लिए तैयार हो सके। यह महीना प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही का आख़िरी महीना होता है, जिसे आम तौर पर गोल्डन मंथ कहा जाता है, क्योंकि पहली तिमाही की तुलना में इस दौरान असुविधा कम होती है।

इस लेख में हम छठे महीने के दौरान शिशु के विकास, आपके शरीर में होने वाले बदलाव, स्वास्थ्य से जुड़े सुझाव के अलावा जानेंगे कि किन हालात में आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए और क्या-क्या खाना चाहिए।

छठे महीने में इन बदलावों के लिए ख़ुद को तैयार रखें

इस दौरान आपकी प्रेगनेंसी के 20 सप्ताह पूरे हो चुके होते हैं और आप पूरी तरह एक प्रेगनेंट महिला के रूप में दिखने लगती हैं, क्योंकि आपके बेबी बंप का साइज़ काफ़ी बड़ा हो जाता है। जैसे-जैसे आपके शिशु को पौष्टिक आहार की ज़रूरत बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आपके शरीर में ख़ून का उत्पादन बढ़ने लगता है। छठे महीने में आपको कई सामान्य लक्षण देखने को मिल सकते हैं, लेकिन इनको लेकर घबराने की ज़रूरत नहीं है। आइए इन बदलावों को समझते हैं।

शारीरिक बदलाव

  • वजन बढ़ना: अब तक, आपका वज़न लगभग 4–6 किलोग्राम बढ़ चुका होगा। यह वज़न शिशु के विकास और डिलीवरी के साथ-साथ स्तनपान के लिए आपके शरीर को तैयार करने के लिए ज़रूरी है।
  • पेट का आकार बढ़ना: जैसे-जैसे गर्भाशय का आकार बढ़ता है, आपके डायाफ़्रैम पर उसी हिसाब से दबाव भी बढ़ता जाता है। इस वजह से आपको सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। आपकी नाभि बाहर की ओर निकली हुई दिखने लगती है। ये सब बेहद सामान्य और प्राकृतिक है।
  • स्ट्रेच मार्क्स: आपके पेट, जांघों और स्तनों की त्वचा खिंचने लगती है, जिससे आपके शरीर के इन हिस्सों पर स्ट्रेच मार्क्स हो सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपने त्वचा को मॉइस्चराज़ करके रखें।
  • ब्रैक्सटन हिक्स कंट्रैक्शन: डिलीवरी से पहले मां का शरीर ख़ुद को इसके लिए तैयार करता है। इसलिए, गर्भाशय यानी यूट्रस में खिंचाव महसूस होता है। कई बार इस खिंचाव को लोग लेबर पेन समझ बैठते हैं, लेकिन यह दर्द उतना तेज़ नहीं होता।

भावनात्मक बदलाव

हार्मोन में होने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन या चिंता हो सकती है। प्राणायाम, ध्यान से जुड़ा कोई योग या फिर प्रीनेटल योग से आपको भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

प्रेगनेंसी के छठे महीने में होने वाले सामान्य लक्षण

लक्षण कारण सुझाव
सीने में जलन और अपच बढ़ते गर्भाशय की वजह से पेट पर बढ़ता दबाव कम मात्रा में ज़्यादा बार भोजन करें, मसालेदार खाना खाने से परहेज करें
पैरों और टखनों में सूजन ख़ून की बढ़ी हुई मात्रा और फ़्लुइड रिटेंशन पैर को ऊंचा करके रखें और पर्याप्त पानी पीते रहें
कमर दर्द बढ़ते पेट की वजह से शरीर के पोश्चर में बदलाव सपोर्टिव चेयर का इस्तेमाल करें और स्ट्रेचिंग करें
पैरों में ऐंठन कैल्शियम या मैग्नीशियम की कमी चलते-फिरते रहें और आहार में डेयरी उत्पाद शामिल करें
वैरिकोज़ वीन नसों पर दबाव और बढ़े हुए रक्त प्रवाह के कारण ज़रूरत पड़ने पर दर्द से राहत देने वाले मोजे पहनें

छठे महीने में शिशु का विकास

छठे महीने तक, आपका शिशु लगभग 12–14 इंच लंबा और उसका वज़न 600 से 900 ग्राम वज़न का हो जाता है। आइए शिशु के विकास पर एक नज़र डालते हैं:

सेंसरी यानी ज्ञानेंद्रियों का विकास

  • आंखें: इससे पहले तक शिशु की बंद रहीं पलकें अब खुलना शुरू कर देती हैं। रेटिना बनने लगती है और शिशु आपके पेट से छनकर आने वाली रोशनी पर प्रतिक्रिया जताना शुरू कर देता है।
  • कान: शिशु की सुनने की क्षमता में काफ़ी सुधार होता है। वह आपकी आवाज़ पहचान सकता है और संगीत या तेज़ शोर जैसी बाहरी आवाज़ों पर प्रतिक्रिया दे सकता है।
  • स्पर्श और स्वाद: शिशु को स्पर्श का अनुभव होने लगता है और अमूमन वे अपने चेहरे को छूने या अंगूठा चूसने जैसी गतिविधियां शुरू कर देते हैं। टेस्ट बड भी बनने लगता है यानी शिशु को स्वाद का शुरुआती अंदाज़ा लगने लगता है। इस दौरान वे एम्नियोटिक फ़्लूइड के स्वाद को पहचान सकते हैं।

त्वचा और फ़ैट का लेयर

शिशु की त्वचा पतली और पारदर्शी होती है, लेकिन इसे एक सफ़ेद क्रीमी परत घेरे रहती है, जिसे वर्निक्स केसियोसा कहते हैं। यह शिशु को एम्नियोटिक फ़्लूइड में सूखने से बचाती है। शिशु के भीतर और भी तरह के फ़ैट बनने लगते हैं, जैसे कि सबक्यूटेनियस फ़ैट। यह उसे इन्सुलेशन और एनर्जी स्टोर करने में मदद करता है।

अंदरूनी अंग

  • मस्तिष्क: मस्तिष्क तेज़ी से बढ़ने लगता है और इस तरह ज़रूरी न्यूरल कनेक्शन की नींव बनने लगती है।
  • फेफड़े: हालांकि, फेफड़े इस समय तक पूरी तरह मैच्योर नहीं होते, लेकिन फेफड़ों में अल्वियोली बनने लगती है और यह सर्फ़ैक्टेंट नामक पदार्थ का उत्पादन शुरू करते हैं, जो जन्म के बाद सांस लेने में मदद करता है।
  • पाचन तंत्र: शिशु थोड़ी मात्रा में अम्नियोटिक द्रव को निगलने और पचाने का अभ्यास करता है। इससे पाचन तंत्र का विकास शुरू हो जाता है।

स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए कुछ ज़रूरी सुझाव

आपके स्वास्थ्य पर अब दो ज़िंदगियां टिकी होती हैं। जितनी आप स्वस्थ रहेंगी, उतना ही आपका बच्चा तंदुरुस्त होगा। ज़ाहिर है कि आपकी सेहत का सीधा असर आपके शिशु के ऊपर पड़ता है। इसलिए, अपनी देखभाल को प्राथमिकता देना ज़रूरी है। नीचे स्वस्थ रहने के लिए कुछ ज़रूरी टिप्स दिए गए हैं:

पोषण

  • आयरन: शिशु को रक्त आपूर्ति की ज़रूरत बढ़ जाती है, ऐसे में आपको ज़्यादा आयरन की ज़रूरत होती है। अपने आहार में पालक, मसूर और आयरन से भरपूर अनाज शामिल करें। साथ ही, ध्यान रखें कि आयरन की मात्रा बढ़ने पर आहार में विटामिन सी की मात्रा बढ़ा दें, ताकि आयरन आसानी से पच सके।
  • कैल्शियम और विटामिन डी: ये पोषक तत्व शिशु की हड्डियों के विकास के लिए बेहद ज़रूरी हैं। अपने आहार में नियमित रूप से डेयरी प्रॉडक्ट और टोफ़ू को शामिल करें और कुछ समय धूप में ज़रूर गुज़ारें।
  • ओमेगा-फ़ैटी एसिड: अखरोट, अलसी के बीज और मछली में पाए जाने वाले ये फ़ैट शिशु के मस्तिष्क और आंखों के विकास में मदद करते हैं।
  • हाइड्रेशन: दिन में कम से कम 8–10 गिलास पानी पिएं, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो।

व्यायाम

इस दौरान हल्की शारीरिक गतिविधियां भी ज़रूरी है। शरीर को फिट रखने और बाक़ी असुविधाओं को कम करने में इससे मदद मिलेगी:

  • पैदल चलना: इससे ख़ून का प्रवाह बेहतर होता है और सूजन कम करने में भी यह काफ़ी मददगार साबित होता है।
  • प्रीनेटल योग: शरीर में लचीलापन बढ़ाने, पोश्चर में सुधार करने और ध्यान लगाने के लिहाज़ से यह काफ़ी मददगार है।
  • पेल्विक फ़्लोर व्यायाम: यह पेल्विक मांसपेशियों को मज़बूत बनाने में मदद करता है, जो डिलीवरी और उसके बाद की रिकवरी में सहायक साबित होता है।

आराम और नींद

जैसे-जैसे आपका पेट बढ़ता है, सोने के पोश्चर में भी बदलाव आता है। ऐसे में आरामदायक नींद लेना कई बार चुनौती भरा काम बन जाता है:

  • बाईं ओर सोएं ताकि शिशु के लिए रक्त प्रवाह बेहतर हो और शरीर के अहम ब्लड वेसल यानी रक्त वाहिकाओं पर ज़्यादा दबाव न पड़े।
  • पेट और घुटनों को सहारा देने के लिए तकियों का इस्तेमाल करें।

डॉक्टर से कब संपर्क करें?

कुछ लक्षण बेहद सामान्य होते हैं, लेकिन अगर आपको नीचे दिए गए किसी लक्षण का पता चलता है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें:

  • पेट में तेज़ दर्द या ज़्यादा मात्रा में ब्लीडिंग
  • सिर में लगातार तेज़ दर्द
  • हाथ, पैर या चेहरे पर अचानक सूजन
  • देखने में धुंधलापन या सांस लेने में तकलीफ़
  • पेट के अंदर शिशु की गतिविधियों में कमी

प्रेगनेंसी के छठे महीने में ये तैयारियां ज़रूरी हैं

प्रेगनेंसी का छठा महीना आने वाले दिनों के लिए प्लान करने के लिए अच्छा समय है। नीचे एक चेकलिस्ट दी गई है, जो आपको चीज़ों को व्यवस्थित रखने में मदद करेगी:

काम अहमियत
मैटरनिटी लीव प्लान करें डिलीवरी के बाद आराम और रिकवरी के लिए यह ज़रूरी है
प्रीनेटल क्लास शुरू करें डिलीवरी और शुरुआती दौर में शिशु की देखभाल के लिए शरीर को तैयार करने में मददगार है
बाल रोग विशेषज्ञ चुनें आपके नवजात की देखभाल और नियमित सलाह के लिए यह प्लानिंग ज़रूरी है
बर्थ प्लान बनाएं डॉक्टर से सलाह लेने के बाद देख लें कि कोई कॉम्प्लिकेशन (जटिलता) तो नहीं है। अगर है, तो उसी हिसाब से बर्थ प्लान करें
घर में ज़रूरी तैयारी करें शिशु की ज़रूरतों के हिसाब से घर में तैयारी करें और एक सूची बना लें

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

क्या मैं छठे महीने में यात्रा कर सकती हूं?

हां, छठे महीने के दौरान यात्रा करना आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, लंबी यात्रा करने से पहले डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें और यात्रा के दौरान बार-बार ब्रेक लेकर चलते-फिरते रहें।

इस महीने मुझे किन चीज़ों से बचना चाहिए?

कच्चे या अधपके सी-फ़ूड, बिना पॉश्चुराइज़ किया गया डेयरी प्रॉडक्ट और ज़्यादा कैफ़ीन के सेवन से बचें। ये आपके बच्चे के विकास के लिए जोखिम भरे हो सकते हैं।

मुझे अपने डॉक्टर से कितनी बार मिलना चाहिए?

ज़्यादातर डॉक्टर दूसरी तिमाही के दौरान महीने में एक बार चेक-अप कराने की सलाह देते हैं। हां, अगर कोई जटिलता आती है, तो उस समय डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करें।

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