आनुवंशिकता विकार क्या है (आनुवंशिक विकार हिंदी में)
- पर प्रकाशित दिसम्बर 20/2022
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आनुवंशिकता विकार क्या है?
जो बीमारियाँ माता-पिता या करीबी रिश्तेदारी से जीन के द्वारा शिशु में आती हैं उन्हें चिकित्सकीय भाषा में आनुवंशिकता विकार यानी जेनेटिक डिसऑर्डर कहते हैं। एक जीन में बदलाव भी जन्म दोष का कारण बन सकता है जैसे कि दिल से संबंधित दोष आदि। इस स्थिति को एकल जीन विकार भी कहते हैं और यह परिवार में एक से दूसरे व्यक्ति में जाता है।
हालाँकि, सभी माता-पिता-पिता से उनके बच्चों में जीन का केवल आधा हिस्सा पास होता है। आमतौर पर यह एक जीन में गड़बड़ी यानी मोनोजेनिक डिसऑर्डर) या एक से अधिक जीन में गड़बड़ी यानी मल्टीफैक्टोरियल के कारण हो सकता है। इसके अलावा, यह समस्या जीन में उत्परिवर्तन के साथ-साथ प्रासंगिकता के संयोजन के कारण भी पैदा हो सकती है।
आनुवंशिकता विकार के प्रकार
विषमता विकार कई तरह के होते हैं जिनमें सिंगल जीन इनहेरिटेंस, मल्टी फैक्टोरियल इनहेरिटेंस, क्रोमोनेट एब्नॉर्मेलिटीज, माइटोकॉन्ड्रियल इनहेरिटेंस शामिल हैं।
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सिंगल जीन इनहेरिटेंस
सिंगल जीन इनहेरिटेंस ऐसे डिसऑर्डर हैं जिसमें केवल एक जीन में दोष होता है। इसके उदाहरण में हनटिंग्टन रोग, सिकल सेल बीमारी और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी आदि शामिल हैं।
हैंटिंग्टन रोकने के लक्षणों में शारीरिक अनियमितता और कड़ी गड़बड़ी शामिल हैं। इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है। हालांकि, कुछ दवाओं की मदद से इसके लक्षणों का प्रबंधन किया जा सकता है।
सिकल सेल रोग की स्थिति में लाल रक्त कोशिकाओं का नुकसान होता है। इसके लक्षणों में दर्द, संक्रमण, एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम और आघात शामिल होते हैं। सिकल सेल बिमारियों का इलाज करने के लिए डॉक्टर कुछ दवाएं निर्धारित करते हैं।
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी विषमता का एक समूह है जिसमें मांसपेशियों को नुकसान पहुचंता है और वे कमजोर हो जाते हैं। डीएमडी नामक जीन में गड़बड़ी के कारण यह समस्या उत्पन्न होती है।
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज करने के लिए फिलहाल कोई भी नुस्खा उपलब्ध नहीं है। लेकिन जीवन की पूर्णता में सुधार करने के लिए डॉक्टर फिजिकल थेरेपी, रेस्पिरेटरी थेरेपी, स्पीच थेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी का उपयोग करते हैं।
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मल्टी फैक्टरियल इनहेरिटेंस
मल्टीफैक्टोरियल इनहेरिटेंस डिसऑर्डर ऐसी वास्तविकताएं हैं, जिनमें मुख्य कारण विविधता, जीवन या पर्यायवाची कारकों का समन्वय है। इस दृष्टि में दमा, दिल की बीमारी, लसीका, सिजोफ्रेनिया, अल्जाइमर और मल्टीपल स्क्लेरोसिस आदि शामिल हैं।
दम का इलाज करने के लिए डॉक्टर फिल्टर और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं निर्धारित करते हैं। साथ ही, डेक वाला इनहेलर और नेब्युलाइजर के प्रयोग की सलाह भी देते हैं।
दिल को प्रभावित करने वाली बीमारियां जैसे कि हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, एनजाइना, संकेत धमनी की बीमारी, फिकियल दिल की धड़कन और एथेरोस्क्लेरोसिस आदि शामिल हैं।
इन बीमारियों का इलाज करने के लिए डॉक्टर जीवन में बदलाव की सलाह देते हैं, दवाइयां और चिकित्सा प्रक्रिया या सर्जरी की मदद लेते हैं।
आहार का उपचार करने के लिए जीवन में बदलाव आता है और स्वस्थ आहार और लाइनिन की कुछ दवाएं लेने की सलाह देते हैं।
सिजोफ्रेनिया का इलाज कई तरह से किया जाता है और यह आमतौर पर इस समस्या के लक्षण और उनके गंभीर और रोगी की उम्र और समग्र स्वस्थ पर निर्भर करता है।
अल्जाइमर और मल्टीपल स्क्लेरोसिस का इलाज मौजूद नहीं है। लेकिन इन लक्षणों को कम और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए डॉक्टर कुछ विशेष प्रकार की दवाएं निर्धारित करते हैं।
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क्रोमोक्रोनेट एब्नॉर्मेलिटीज
क्रोमोक्रोनेट एब्नॉर्मेलिटीज यानी क्रोमोसोम असामान्यताएं वो संकट हैं जो क्रोमोनेट प्रभावित होते हैं जैसे कि पर्याप्त क्रोम क्रोमोनेट होना, अतिरिक्त क्रोमोसेट होना या ऐसा क्रोमोसम जो किसी प्रकार की असामान्यता हो।
कोशिका के विभाजन होने पर जब कोई त्रुटि (त्रुटि) होती है तो क्रोमोक्रोनेट एब्नॉर्मेलिटीज की समस्या पैदा होती है। आमतौर पर ये यौगिक या अंडे होते हैं। हालांकि, ये प्रेग्नेंट भी हो सकती हैं।
क्रोमोक्रोनेटिज़ में डाउन सिंड्रोम और वूल्फ-हिर्शहॉर्न सिंड्रोम शामिल हैं। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए डॉक्टर की टीम उसे चिकित्सा देखभाल प्रदान करती है।
वूल्फ-हिर्शहॉर्न सिंड्रोम का उपचार नहीं है। लेकिन फिजिकल या ऑक्यूपेशनल थेरेपी, सर्जरी, जेनेटिक काउंसिलिंग, स्पेशल एजुकेशन या ड्रग्स थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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माइटो कॉन्ड्रियल इनहेरिटेंस
माइटो कॉन्ड्रियल डीएनए में गड़बड़ी जैसी समस्या केवल मां से ही उसका बच्चा गुजरता है। वर्तमान में माइटोकॉन्ड्रियल विकार का कोई उपचार मौजूद नहीं है। हालांकि, लक्षणों के आधार पर डॉक्टर आहार प्रबंधन, विटामिन संबंधी आहार, एमिनो एसिड गतिविधियों और कुछ विशेष दवाओं की मदद से लक्षणों को कम कर सकते हैं।
आनुवंशिकता की सूचियाँ
कुछ प्रमुख आनुवंशिकी के नाम नीचे दिए गए हैं:
- रंग-रोगन
- ऑटिज़्म
- प्रोजिरिया
- मलेदा रोग
- एपार्ट सिंड्रोम
- टॉरेट सिंड्रोम
- डाउन सिंड्रोम
- मोनिलिथिक्स
- ब्रुगाडा सिंड्रोम
- एसीडी सिंड्रोम
- गार्डनर सिंड्रोम
- कोस्टेलो सिंड्रोम
- स्टिलर सिंड्रोम
- एंजेलमैन सिंड्रोम
- विलियम्स सिंड्रोम
- नेल पटेला सिंड्रोम
- ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम
- लेस-निम्न सिंड्रोम
- ट्यूबरस स्केलेरोसिस
- डीओआर सिंड्रोम
- ट्रेचर कॉलिन्स सिंड्रोम
- स्केलेटल डिसप्लेसिया
- आनुवंशिकता
- चर्म रोग (कुछ स्तनधारियों में)
- अनिद्रा (कुछ मामलों में)
जेनेटिक टेस्ट के फायदे और नुकसान क्या हैं?
जेनेटिक टेस्ट की मदद से आप विविधता संबंधी बीमारियों का पता लगा सकते हैं और जांच के परिणाम से शुरूआत उपचार विकल्पों का चयन कर सकते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों को यह जांच के बाद खतरा भी हो सकता है, क्योंकि इस परीक्षण के बाद उन्हें यह बात पता चली कि उनके बच्चे को कोई जेनेटिक डिसऑर्डर है। साथ ही, इस जांच से एक परिवार के कई भेद भी जिम्मेदार हो सकते हैं जिससे घर में तनाव का माहौल पैदा हो सकता है।
केसरी जाने जाने प्रश्न
क्या आनुवंशिकता विकार ठीक हो सकते हैं?
जीवन और आहार में सकारात्मक बदलाव लाकर जीव की सेहत में सुधार करके उनके बुरे प्रभावों को रोका जा सकता है।
जेनेटिक टेस्ट कैसे होता है?
जेनेटिक टेस्ट में ब्लड का सैंपल लेकर उनका परीक्षण किया गया। जांच के दौरान इस बात का पता चल सकता है कि माता-पिता या पिता में ऐसा कौन सा जीन मौजूद है जो उनके होने वाले बच्चे को जेनेटिक बीमारी दे सकता है। जेनेटिक टेस्टिंग से आप अपने होने वाले बच्चे को जेनेटिक डिसऑर्डर से बचा सकते हैं।
जेनेटिक टेस्ट कब करना चाहिए?
यदि आप या आपके अभिनय के परिवार से जुड़ी आनुवांशिक बीमारियां जैसे कि स्तन या डिम्बग्रंथि के कैंसर, मोटापा, पार्किंस, सीलिएक या सिस्टिक फाइब्रोसिस चले आ रहे हैं तो ऐसे में आपको जेनेटिक टेस्ट करवाना चाहिए।
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ने लिखा:
डॉ. अपेक्षा साहू
सलाहकार
डॉ. अपेक्षा साहू, 12 वर्षों के अनुभव के साथ एक प्रतिष्ठित प्रजनन विशेषज्ञ हैं। वह महिलाओं की प्रजनन देखभाल आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित करने के लिए उन्नत लेप्रोस्कोपिक सर्जरी और आईवीएफ प्रोटोकॉल तैयार करने में उत्कृष्टता प्राप्त करती है। उनकी विशेषज्ञता उच्च जोखिम वाले गर्भधारण और स्त्री रोग संबंधी ऑन्कोलॉजी के साथ-साथ बांझपन, फाइब्रॉएड, सिस्ट, एंडोमेट्रियोसिस, पीसीओएस सहित महिला प्रजनन विकारों के प्रबंधन तक फैली हुई है।
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